
गुड़िया दौड़ी-दौड़ी आती।
मांँ के आंँचल में छिप जाती।।
बेसन का माँ लड्डू लाती।
गुड़िया हंँसकर उसको खाती।।
गालों पर है छाई लाली।
गुड़िया दिखती भोली-भाली।।
चलती छम-छम हो मतवाली।
नागिन सी है चोटी काली।
पापा को भी अतिशय प्यारी।
घर में गूंँजे है किलकारी।।
सारे जग से बिटिया न्यारी।
महके आंँगन की फुलवारी।।
गुड़िया मधुरिम गाना गाती।
दादी सुनकर हैं हर्षाती।।
जब भी वह मुखअपना खोले।
कानों में है मिश्री घोले।।
देती सबको है सौगातें।
मीठी-मीठी प्यारी बातें।।
मीठी बातें रस बरसाती।
गुड़िया की छवि सबको भाती।।
डॉ गीता पांडेय अपराजिता
रायबरेली उत्तर प्रदेश



