
संत, मुनि, स्वामी, संन्यासी,योगी होकर किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा या किसी विशेष राजनीतिक दल का प्रचार प्रसार करना और उस उस राजनीतिक विचारधारा और राजनीतिक दल की कमियों पर पर्दा डालना सनातन धर्म और संस्कृति के प्रतिकूल कर्म है। ऐसे लोगों को बिना किसी पक्षपात, लाग-लपेट, प्रलोभन,पद और प्रतिष्ठा के प्रभाव में होकर कोई भी कर्म नहीं करना चाहिये। स्वार्थ और पूर्वाग्रहवश कोई कुछ भी कहता रहे, लेकिन सच यही है कि अतीत में किसी भी संत, मुनि, स्वामी, संन्यासी, योगी, शंकराचार्य आदि ने ऐसा नहीं किया है। सत्ता के केंद्र में चाहे कोई भी रहा हो, उन्होंने निष्पक्षता से सच ही कहा और सच का ही समर्थन किया। आजादी के पश्चात् भारत के हालात बिल्कुल विपरीत हो गये हैं। विभिन्न संप्रदायों और मजहबों के हजारों प्रसिद्धि प्राप्त संतों, मुनियों, स्वामियों, संन्यासियों, योगियों और शंकराचार्यों में से कोई विरला ही ऐसा होगा,जो जनमानस की धरातलीय नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक समस्याओं से समझौता करके किसी न किसी राजनीतिक विचारधारा और राजनीतिक दल का प्रचारक न हो। अपने निज कर्म नैतिक,धार्मिक, आध्यात्मिक को छोड़कर लगभग ऐसे लोगों में प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रुप से राजनीति करने का प्रेत सवार है।इन लोगों को नैतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों से ऐसा क्या नहीं मिला कि जिसकी प्राप्ति के लिये ये राजनीति में घुसे चले जा रहे हैं। अधिकांश ऐसे लोगों को विधायक,सांसद और मंत्री बनने की लालसा है। जनमानस भारतीय का नैतिक,धार्मिक और आध्यात्मिक पतन हो रहा है और जिनकी जिम्मेदारी इस पतन को नहीं होने देने की थी,वो अधिकांश में राजनीति करने के लिये हाथ- पैर मार रहे हैं। ऐसे लोग न नैतिकता के हैं,न धर्म के हैं तथा न ही अध्यात्म के हैं। ऐसे लोग राजनीति में आकर भी विफल ही हो रहे हैं। राजनीतिक क्षेत्र के धूर्त धुरंधर लोग सिर्फ और सिर्फ नीति,धर्म और अध्यात्म क्षेत्र के प्रसिद्धि प्राप्त लोगों के कंधों से मिसाइल दागकर थोक में वोट लेना चाहते हैं। इससे आगे इनका कोई महत्व नहीं है,इनकी कोई इज्जत नहीं है तथा कोई सम्मान नहीं है। पाश्चात्य दुष्प्रभाव के कारण वैसे ही भारतीय जनमानस अपनी मूलभूत नैतिकता, धार्मिकता और आध्यात्मिकता के छोड़ता जा रहा है। और ऊपर से इन तथाकथित संतों, मुनियों, स्वामियों, संन्यासियों, शंकराचार्यों ने अपना कर्तव्य -कर्म छोड दिया है। इससे भारत के हालात अत्यधिक विषम, वैमनस्यपूर्ण, नीति विहीन और संवेदनहीन हो गये हैं।
डॉ. शीलक राम आचार्य
वैदिक योगशाला कुरुक्षेत्र
(हरियाणा)



