साहित्य

मिठाई (बाल कविता )

डा. राजेश तिवारी मक्खन

देखो भाई यह दुकान है रखीं भरी मिठाई ।
जिसको देख देखकर के जीभ मेरी ललचाई ।।

भरी जलेबी रस से देखो , भाता है रसगुल्ला ।
भरा हुआ मिल जायें अब इसका एक कचुल्ला ।।

लड्डू पेड़ा गुलाब जामुन और बरफी बसातपेनी ।
बूंदी बड़िया बन्न बन्न के देखो बने है छेना छेनी ।।

बालूसाई रस मलाई आदि के भारी भरे भगोना ।
इमरती बेड़ी रस की गुजिया मालपुआ के दोना ।।

कलाकंद और मगद बेसन के लड्डू रहे ललचाई ।
मेरे भाई मुझे दिला दो , बस थोड़ी बहुत मिठाई ।।

शुगर अगर बीमार तो तुम नहीं खा सकते मिठाई ।
औषधि उचित समय पर लेना नहीं आयेगी कठिनाई ।।

बहिना भाई देख मिठाई मन में अति ललचाते ।
चलो चलो घर तुरंत पिता से पैसा लेकर आते ।।

डा. राजेश तिवारी मक्खन
झांसी उ प्र

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