मन रे गुरु चरणों की रज ले।
अन्तरा –
1.पग नग ज्योति गहन तम हरती,
भ्रम मद मोह दहन कम करती।
क्षुद्र विचार सकल जग घेरे,
अवगुण भीतर के सब तज ले।।
मन रे गुरु चरणों की रज ले !
2.भटक रहे सब छल प्रपंच में,
उलझ बहे भव सिन्धु रंच में।
ब्रह्मा विष्णु महेश सदृश गुरु,
प्रतिदिन अन्तर्मन से भज ले।।
मन रे गुरु चरणों की रज ले !
3.वेद पुराण निषद् मानस का,
मंत्र ऋचा सुन गुरु तापस का।
पार सहज भव सागर होगा,
विजयी सत्य सनातन ध्वज ले।।
मन रे गुरु चरणों की रज ले !
——————————————
डॉ० गीता मिश्रा ‘गीत’
हल्दवानी,नैनीताल,उत्तराखण्ड




