साहित्य

मनपसंद

योगेश गहतोड़ी "यश"

आज के भौतिकतावादी समय में प्रत्येक मानव की पसंद अलग-अलग है। इसी ‘मनपसंद’ विषय पर मैं आज अपनी भावनाएँ कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ।

पेट में भूख जब लगती है, लगता है काँटा हृदय में,
भूख मिट जाय, यही है *मनपसंद* उसके जीवन में।
रोटी के एक कौर में ही छिपा है, सुख का आनन्द,
भूखे को भोजन देना ही है, जीवन का परमानन्द।

रोटी की चाह में, वह मिट्टी की सुगंध खोजता,
सादगी में उसकी भक्ति है, वो हर पल में जीता।
खाने को जो मिलता, है वही उसका *मनपसन्द*,
भूख मिटाकर मिलता है, उसे जीवन का आनन्द।

तन पर कपड़े नहीं, मनुज जब ठंड से ठिठुरता है,
केवल तन ढकने की आशा, बस उसको होती है।
उस समय केवल ठंड से बचाव ही *मनपसन्द* है,
जो उस मनुज का तन ढक दे, वही उसका मित्र है।

वाणी में प्रेम की मिठास हो, ये जीवन की दास्तान,
एक दूसरे के दु:ख को समझना, यही है अपनापन।
संग-संग चलकर, कठिनाइयों का सामना करना,
*मनपसंद* की परिभाषा यही है, सच्चा सुख पाना।

जीवन यात्रा है कठिन, पर मन में है नित विश्वास,
एक बूँद पानी की कीमत समझता है वह खास।
हर खुराक में होती नित, माँ के प्यार की खुशबू है,
रोटी, कपड़ा और पानी मिलना प्रथम *मनपसंद* है।

एक सरल जीवन जीकर, हम समझ सकते हैं,
कि असली खुशी का मतलब क्या होता है।
जीवन का अर्थ है, प्रेम, दया और सहानुभूति,
इसी में छिपी है, *मनपसंद* की सच्ची उत्पत्ति।

जब हम एक-दूसरे का हाथ थामकर साथ चलते हैं,
तो जीवन के संघर्ष सरल हो जाते हैं।
*मनपसंद* वही है — जहाँ प्रेम, दया और सरलता हो,
और वहीं सच्ची खुशियों का जन्म होता है।

*दीनं च पालयेत् सर्वं, अन्नं पयः च यच्छति,*
*वस्त्राणि च ददाति यः, स मनःप्रियतमा भवेत्।*
*सदा धर्मेण सन्निधिं, वर्तते तत्र साधकः,*
*सर्वेषां प्रियं मन्यते, यस्तु धर्मेण वर्तते।*

अत: एक प्यासे, भूखे और वस्त्रहीन व्यक्ति के लिए *”मनपसंद”* की परिभाषा उसकी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति, *दया और सहानुभूति* से जुड़ी होती है। वास्तविक खुशी तब मिलती है जब जीवन की आधारभूत आवश्यकताएँ पूरी होती हैं और यह केवल भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवता के प्रति प्रेम को भी दर्शाता है। धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति सदा सकारात्मक सोच में जीवन यापन करता है और सभी के लिए प्रिय बनता है, जिससे उसे जीवन में खुशी, संतोष और सम्मान मिलता है।

इस प्रकार, *”मनपसंद”* शब्द का अर्थ, जीवन की केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं, बल्कि धर्म और नैतिकता के आधार पर दूसरों के प्रति दया और सेवा का माध्यम बनना है।

✍️ योगेश गहतोड़ी “यश”

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