साहित्य

मोबाइल और बचपन

संजय पाण्डेय "सरल"

मोबाइल और बचपन

आज मेरा बच्चा मेरी गोदी में सोता नहीं,
छोटी छोटी चीजों के लिए जिद कर रोता नहीं
आज वह खुद के पैरों पर खड़ा हो गया है,
शायद देखते देखते आज वह बड़ा हो गया है

देख रहा हूँ, उम्र के साथ समय भी बदल रहा है,
जिसे सहेजता था बड़े प्यार से,वो फिसल रहा है,
मोबाइल ने देखो कैसे कहां उसे पहुंचाया है,
परिवार छूटा,दोस्त छूटे,उसे FB,इंस्टाग्राम बस भाया है,
उम्र छोटा है परन्तु,आज मेरा बच्चा क्या से क्या हो गया है
शायद देखते ………II १ II

खेत छूटा,खलिहान छूटा,छूट गया बरगद का छांव,
व्यस्त मोबाइल में जीवन है,भूल गया कागज की नाव
बचपन खो गया कहांअब,खो गया मुस्काना होंठों का,
13 का जीवन बीत रहा 26 में,नहीं रहा अर्थ बातों का,
जिसे जागना है सुख के पल में,पर वो कहां सो गया है
शायद देखते ………II २ II

संजय पाण्डेय “सरल”
जौनपुर ,उत्तर प्रदेश

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