साहित्य

मतलबी रिश्ते

अरुण दिव्यांश

बहुत होते हैं मतलबी रिश्ते ,
मतलब से रिश्ते बनाते हैं ।
मतलब सध जाता जिस दिन ,
पुनः नजर नहीं आ पाते हैं ।।
नजर आते भी हैं जिस दिन ,
रास्ते बदलकर चले जाते हैं ।
यदि रास्ते हों एक ही जहाॅं पे ,
नजर ही अपनी वे छुपाते हैं ।।
चल नहीं पाये दोनों ये तरीके ,
नई बहाने कोई भी बनाते हैं ।
सध गया मतलब गर अपने ,
फिर हेंकड़ी भी वे दिखाते हैं ।।
यही‌ तो है जमाने का दस्तूर ,
नि: स्वार्थ रिश्ते नयनों से दूर ।
चतुर सयानों से भरी दुनिया ,
बेईमानी ठगी चल रहे भरपूर ।।

अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।

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