मुझको दुःख से प्यार हो गया।
सहते सहते दुःख मुझे बन्धुवर,
मुझको दुःख से प्यार हो गया।
काँटों की शैय्या क्यों कह दूँ –
जब गुलाब सा यार हो गया।।
टिसता था जो फुंसी बनकर ,
वो व्रण फूटा निःसार हो गया।
उर की पीड़ा नयनों ने ले ली,
रिमझिम था मल्हार हो गया।।
गति पकड़ा पागल बयार ने —
पुरवा पछुवा में मिलन हो गया।
स्नेह दिया था जिस बाती को –
वर्तिक से ही गृह दहन हो गया।।
चुल्लू भर क्यों कहते इसको-
जब डूबे तो मँझधार हो गया।
था दिया सहारा तिनको ने ही ,
माँझी के हित पतवार हो गया।।
जहर उगलते ही विषदन्ती के,
सारा पयशाला खार हो गया।
था पाला व पोसा दुग्ध पिलाया,
वह आस्तीन का साँप हो गया।।
गिद्ध बने मनुवंशी जबसे,
आसमान वीरान हो गया।
रंग बदलते हैं गिरगिट सा –
गुणधर्मी इन्सान हो गया।।
प्राण प्रतिष्ठित हुआ मूर्ति में,
मूर्तिकार गुमनाम हो गया ।
चढ़ा चढ़ावा प्रभु चरणों में,
सकल पुजारी नाम हो गया।।
थाल सजा जिस हित पूजा का,
वो अवलोकी अवलोप हो गया ।
पास समझता था जिसको मैं,
वो तारक अपरम्पार हो गया।।
✍️ चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा”अकिंचन,”गोरखपुर।
चलभाष -९३०५९८८२५२




