साहित्य

पावस का दिन हुआ पुराना

डॉ अर्जुन गुप्ता 'गुंजन'

नील धवल आकाश सुहाना।
पावस का दिन हुआ पुराना॥
शरद ऋतु शीतलता लाया।
मूँगफली मोहक मन भाया॥

वृष्टि थमी चहुँदिश हरियाली।
शारद लाता है खुशियाली॥
कांस पुष्प की छटा निराली।
कुहू कोकिला की मतवाली॥

धवल चाँदनी नभ से बरसे।
वसुधा से मिलने को तरसे॥
पकी बालियाँ धान्यक झूमें।
शुचि सरोज सरवर को चूमें॥

सूरज का पारा अब उतरा।
प्रातकाल में छाया कुहरा॥
ऊनी कपड़े और रजाई।
उपयोगी हैं नित अब भाई॥

अब मुँड़ेर पर कागा बोले।
उपवन में मधुकर नित डोले॥
उष्मा से अब राहत पाई।
आनंदित सब लोग-लुगाई॥

डॉ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

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