
उजाला करे सूर्य आभा बिखेरे।
दिवा रौशनी नव्य न्यारा उकेरे।।
यही सभ्यता का सदा है सहारा।
यहाँ भव्यता का सदा है गुजारा।।
कहीं है उजाला कहीं है अँधेरा।
महा सूर्य से नित्य होता सवेरा॥
करे चंद्रमा रात्रि में रौशनी है।
सभी जीव में साँस की धौंकनी है॥
यहाँ दिव्यता का दिखावा नहीं है।
सभी देव देवी विराजें यहीं है।।
नहीं द्वेष ईर्ष्या अहंकार कोई।
सभी साथ में हैं न झंकार कोई ।।
*© डॉ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’*
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश




