
योग निद्रा से हैं जगे,आज विष्णु भगवान।
प्रबोधिनी एकादशी, व्रत का बना विधान।
वसुधा है अतिशय मगन,अब होंगे शुभ कर्म,
चार मास के बाद ही,शुभता दिन का मान।।
तुलसी के फेरे लगा, पूजन करते लोग।
शुभ कर्मों का है बना, सुंदर यह संयोग।
गन्ने का मंडप सजे, जले प्रेम की ज्योति,
श्री हरि तुलसी के बिना, नहीं लगाते भोग।।
देवों की दीपावली, जगमग है संसार।
शालिग्राम के साथ में, तुलसी का श्रृंगार।
कलश सजे मंडप बने, होते मंगल गीत,
शुभ मुहूर्त पावन घड़ी,खुले नेह के द्वार।।
तुलसी का पूजन करो, समझो मत बेकार।
सर्व गुणों की खान हैं, औषधि का भंडार।
करती जहांँ निवास है, रहती वहांँ उमंग,
रिद्धि सिद्धि देती सदा,करती कृपा अपार।।
डॉ गीता पांडेय अपराजिताझ सलोन रायबरेली उत्तर प्रदेश
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