आलेख

पटाखा

किरण कुमारी 'वर्तनी'

दिवाली के दिन शाम के समय रमेश मन ही मन बुदबुदाते हुए ….पर्व- त्योहार में लड़ाई अवश्य हो ही जाती है , जितना भी मुंँह बंद रखूंँ .. की, लड़ाई न हो ,पर ..फिर भी किसी न किसी बात को लेकर हो ही जाती है , यूंँ ही मन का बोझ उठा कर , रमेश घर के कमरे से बाहर बगीचे की ओर बढ़ने लगते हैं, फिर कुछ देर शांत होकर, एक लंबी ठंडी, राहत की सांँस लेते हैं ,तभी उन्हें एक आवाज सुनाई देती है, हैप्पी दिवाली…., हैप्पी दिवाली… यह सुनकर रमेश के कान खड़े हो गए और आवाज की ओर सिर घुमाते हैं। उन्हें अपनी बाई ओर बगीचे में टहल रहे छोटे भाई(रवि) दिखाई देते हैं , जो मोबाइल को , फुल स्पीकर में रखकर, प्रियजन को दिवाली की शुभकामनाएं संदेश दे रहे हैं। उसे देखकर… रमेश मन ही मन मुस्कुराने लगते हैं,और अब उनकी निगाहें बिल्कुल भाई की ओर टिक सी गई । भाई की बातें करने के अंदाज को देखने लगे ,तभी उनके छोटे भाई की नजर भी बड़े भाई रमेश से टकराती है, रवि अपने बड़े भाई को देखकर फोन में बातें करना बंद करके, मोबाइल को पैंट की बाई जेब में रखकर , होठों पर हल्की- सी मुस्कान लिए ,भाई की ओर बढ़ते हैं।

ज्यों ही रवि ..बड़े भाई रमेश के बिल्कुल करीब आते हैं, वैसे ही रमेश बोलते हैं, छोटे भाई अगले महीने तुम्हारी शादी है… जितना मुस्कुराना है… मुस्कुरा लो…. फोन में जोर-जोर से बातें करना है.. कर लो ….जिंदगी बिल्कुल आजाद है …फिर मत बोलना बड़े भाई ने कुछ सलाह नहीं दी।भैया की बातें सुनकर…. रवि हा -हा-हा कर ठहाका लगाते हैं , फिर थोड़ी देर कुछ रुक कर बोलते हैं.. ऐसा क्यों सोचते हैं भैया? ऐसा कुछ नहीं… हैं,शादी के बाद भी मौज भरी जिंदगी होती है।

रवि की ऐसी बातें सुनकर…
अब रमेश आश्चर्य प्रकट करते हुए ,अच्छा… !तुम्हारी शादी नहीं हुई है न… इसलिए ,ऐसी बातें बोल रहे हो ….और यह जो बगीचे में घूम-घूम कर , फूल स्पीकर मे मोबाइल को रखकर, सबको दिवाली की शुभकामनाएं संदेश दे रहे थे . . हैप्पी -दिवाली…. ,हैप्पी- दिवाली…. अगले साल इतनी खुशी से क्या? दे पाओगे ..

रवि अपने बड़े भाई रमेश की ,यह सब बातें सुनकर ,अब जोर-जोर से हंँसने लगे ,फिर थोड़ी देर में अचानक चुप हो जाते हैं। भैया के चेहरे को देखकर , रवि महसूस करने लगे .. की, भैया के चेहरे का रंग उड़ा हुआ है और शायद इस समय मेरा हंँसना ठीक नहीं है ….सो अब वह धीरे-धीरे बोलते है ,भैया.. आपकी शादी की मात्र पांँच ही साल बीते हैं ,धीरे-धीरे सब ठीक ….. । रमेश ,रवि की बात को बीच में ही काटकर बोलते हैं ….,मैं भी यही सोचता था.. सब कुछ धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी, लेकिन नहीं …!दिवाली की पटाखा साल में एक बार फटती है ,मगर जिसकी शादी हो गई है ….उसके जीवन में अब- -जब ,कभी भी फटती रहती है ,अभी इससे आगे और कुछ कह पाते …की ,तभी रमेश को लगा की उनके कुर्ते को ,कोई पीछे से खींच रहा है, फिर वह अपनी बातों पर विराम लगाकर, पीछे मुड़कर देखते हैं…. जो अब तक इतने क्रुद्ध थे,खीझे -खीझे से नजर आ रहे थे , अब अकस्मात उनके चेहरे पर एक अलग सी खुशी चमकने लगी थी और बड़े ही प्यार से कुर्ता खींचने वाली को ,अपने दोनों बाँहों मैं भरकर , उसे पुचकारने लगते हैं।

वह कोई और नहीं उनकी तीन साल की प्यारी गुड़िया बिटिया थी। जिस पर वह जान छिड़कते हैं,बिटिया से बड़े ही प्यार से पूछते हैं ..गुड़िया रानी को …क्या चाहिए ? पास खड़े रवि यह सब देख मुस्कुराने लगा और सोचने लगा, जो भैया अभी तक इतने तनाव में थे ,जिनका मूड़ इतना बिगड़ा हुआ था, वह एक पल में कितने खुश नजर आ रहे, रवि चुपचाप रमेश की आंँखों में देख-देख मुस्कुराते । रवि को अपनी ओर ऐसे देखना रमेश को,असहज -सा- महसूस हो रहा था , उनकी अंतरात्मा रवि से… प्रश्न करने पर विवश कर देती है सो पूछा…क्या बात है? रवि… ऐसे क्यों मुझे घूर रहे हो ?
रवि हंँसकर …भैया
अभी-अभीआप मुझे दो रंग में दिखाई दियें।
थोड़ी ही देर पहले शादी के बुरे परिणाम के बारे में बता रहे थे, लेकिन जैसे ही गुड़िया बिटिया आई, खुशी के रसगुल्ले मुंँह में आ गए और खूब लाड़ लगाए। आप दोनों को ऐसे देखकर ,मैं तो संसार के सबसे खूबसूरत दृश्य का आनंद उठाने लगा…

भैया…! अगर बिटिया को इतना प्यार करने वाले पिताजी से दूर किया जाएगा और उसके नखरे उठाने वाले ससुराल में कोई न होगा तब पटाखा….. फटेगी….
ऐसा कह कर रवि जोर-जोर से हँसने लगे …हा -हा-हा….

तभी घर की खिड़की खुली और अंदर से आवाज आई, पूजा का समय हो गया है ,आप सभी घर के अंदर आ जाइए.. यह कोई और नहीं, रमेश की पत्नी, रवि की भाभी और गुड़िया की मांँ थी।

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