
अनपढ़ मां की जंग : यह उस किताब का नाम है जो संघर्षों पर लिखी गई है।
आज के समय जब हम नजर उठाकर देखते हैं -तो जहां एक ओर युवा होती पीढ़ी अपने घर के बुजुर्ग माता-पिता और बाबा- दादी से बिमुख हो रही है वहीं घर के बूढ़ों को उनके अपने ही बेटे और बहू ऊनको वृद्धाश्रम में छोड़ देते हैं।क् ऊनको अपने परिवार से बिछड़ने की पीड़ा नहीं होती होगी यय अत्यंत विचारणीय प्रश्न है ।
ऐसे समय में मां के प्रति अपने मन की सहजता का परिचय देते हुए मां की तमाम पीड़ाओं को एक पुस्तक के रूप में लिपि बद्ध करने का पुनीत कार्य कर दिखाया है – हापुड़ (उत्तर प्रदेश) कवि,शायर एवं “कबीर साहित्य परिषद” भारत के संस्थापक – डॉ नरेश सागर जी ने।
हिंदी के साहित्य जगत में यह एक नयी पहल होगी।जब एक बेटाअपनी जीवित मां के संघर्षों की कहानी को लिपिबद्ध करे ।
डॉ सागर द्वारा अपनी अनपढ़ मां पर लिखी गई यह बायोग्राफी २४०पेज की है।यह दुनियां भर की सबसे बड़ी बायोग्राफी है।
मां ने तो सबको लिखा, मां को लिक्खे कौन ।इक कोशिश मैंने करी, सागर टूटै मौन ।।
आशा है “अनपढ़ मां की जंग” यह उन सभी माताओं के लिए सम्मान होगा जो अपनों के बीच हैं और जो अपनों से दूर हैं।
पुस्तक में शब्दावली अत्यंत सरल और मधुर है।
कहीं – कहीं पर भाव इतने प्रवल हैं कि आंखें नम हो जाती हैं।
कुल मिलाकर डॉ सागर का यह प्रयास इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
समीक्षा – डॉ रोहित सिंह गौर



