
वरिष्ठ कवि सुभाष चंद्र चौरसिया ‘हेमबाबू’ का प्रथम काव्य संग्रह ‘ हेमांजलि’ अनुभवों का पुलिंदा कहा जाय, तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।जिसे उन्होंने अपनी धर्मपत्नी स्वर्गीय श्रीमती हेमवती चौरसिया जी को समर्पित कर उनकी स्मृतियों को जीवंत रखने का अकिंचन प्रयास किया है।
‘कवि की कलम से’ में कवि लिखता है कि कविता के भाव कवि की मन:स्थिति, स्थान, समय, परिस्थित, घटना क्रम पर निर्भर करते हैं, कवि की कविता कथानक पर आधारित होती है। संपूर्ण कविता उसी के इर्द-गिर्द घूमकर स्वयं अपने अभिप्राय को पूर्ण करते हुए कुछ यूँ आनंद देती है, कि पाठक उसी स्नेह सिंधु में गोता लगाने लगता है।
वरिष्ठ कवि डॉ रामकरण साहू ‘सजल’ का मानना है कि हिंदी साहित्य एवं हिंदी व्याकरण के विद्वान हेमबाबू की रचनाधर्मिता से निकले मोतियों की चमक उनकी पूर्ण परिपक्वता को परिलक्षित करते हुए साहित्य जगत को रोशनी प्रदान कर रहे हैं।
वरिष्ठ कवि/लेखक महेंद्र ‘माणिक’ जी हेमबाबू की हेमांजलि को ‘भावनाओं का समुंदर मानते हैं ।
आधुनिक रसखान एम. अंसारी ‘बेबस’ मानते हैं कि हेमबाबू की कविताओं में दर्द भी है और जीवन के उतार-चढ़ाव की झलक भी।
वरिष्ठ कवयित्री/गजलकार डा. सीमा विजयवर्गीय महसूस करती हैं कि प्रस्तुत काव्य संग्रह ‘हेमांजलि’ जीवन साथी को समर्पित अमर प्रेम का प्रतीक है।
जबकि वरिष्ठ कवि/साहित्यकार/समीक्षक
सुधीर श्रीवास्तव का मत है कि हेम बाबू की रचनाओं को पढ़कर अगली पीढ़ी आत्मचिंतन कर उसकी गहराई और महत्ता को जरूर महसूस करेगी।जो किसी भी कलमकार के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है।
परिवार,समाज, राष्ट्र को समर्पित रचनाओं वाले संग्रह की प्रथम रचना जीवन साथी को समर्पित ‘हेमांजलि’ भावुक करने के साथ जीवन साथी की महत्ता को रेखांकित करती है-
तुम्हारे जाने के बाद
मेरा वो नित का नियम
बदस्तूर जारी है,
जो तुम्हें अच्छा लगता था।
भाग्य में कवि सचेत करते हुए लिखता है –
कर लेता है जो कोई हठ
मझधार पार वहीं होता।
आदमी के बारे में कवि अनिर्णय के भंवर में है। तभी तो
कहता है कि –
इंसान जिंदा है या मर गया
मुझे पता नहीं
लेकिन इतना जरूर सत्य है
इंसानियत की लाश
दफना दी है इंसान ने।
माँ के बारे में कवि साफ कहता है कि –
माँ कितना कुछ सहती है
सहती है तेरे वाणी के बाण
फिर भी चुप ही रहती है।
हिंदुत्व पर कवि का नजरिया साफ है –
हिंदुत्व मानवता का
संसार नहीं सहेगा
हिंदुत्व दुनिया से
आतंक मिटा के रहेगा।
शहीद को कवि अपनी श्रद्धांजलि कुछ इस तरह देता है-
जिस अंचरा का तुमने दूध पिया
वीरांगना माँ के चरणों में प्रणाम।
जवानी के बारे में कवि का नजरिया है –
पिता के बुढ़ापे की लाठी है
माँ के चरणों की रज होती है जवानी।
श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 50 रचनाओं वाले संग्रह में रचनात्मक विविधताओं का समावेश संग्रह की उपयोगिता साबित करने में सफलता का साफ संकेत दे रहा है। संग्रह की रचनाएं जीवन के अनुभवों को रेखांकित करती हैं। आम जन को अपनी ओर आकर्षित करती बहुपक्षीय रचनाओं के इस संग्रह को पढ़कर ऐसा लगता है कि रचनाएं हमसे, आपसे सीधे संवाद कर रही हैं, सरल, सहज शब्दों का चयन संग्रह की ग्राह्यता को प्रभावी बना रहा है।
और अंत में सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि उम्र के इस पड़ाव पर हमारे प्रिय काकू ‘हेमबाबू’ की जिजीविषा के दम पर साहित्यिक, सामाजिक सक्रियता बेमिसाल है।’हेमांजलि’ की सफलता और काकू के स्वस्थ सानंद जीवन की मंगलकामनाओं के साथ असीम शुभेच्छाओं सहित…..।
गोण्डा उत्तर प्रदेश
8115285921




