साहित्य

पुस्तक समीक्षा:काव्य संग्रह ‘जिंदगी है कट….ही जायेगी’

समीक्षक:संजीव कुमार भटनागर लेखक: सुधीर श्रीवास्तव 

सुधीर श्रीवास्तव की स्वरचित, प्रकाशित एकल काव्य–कृति ‘जिंदगी है कट ही जाएगी’ वैदिक प्रकाशन, हरिद्वार से प्रकाशित, अपने नाम के अनुरूप मानव जीवन के संघर्षों, अनुभूतियों और अंतर्मन की बेचैन लहरों को शब्दों में पिरोती हुई एक प्रभावी रचना–यात्रा के रूप में सामने आती है।
पुस्तक का समर्पण कवि के संस्कार, संवेदना और पारिवारिक मूल्यों का द्योतक है| पूज्य नाना–नानी तथा माता–पिता के श्रीचरणों में आदरांजलि, कवि हृदय की विनम्रता को उजागर करती है। समर्पण के पश्चात “मन की बात” में कवि ने मानव जीवन की उतार–चढ़ाव भरी प्रक्रिया, आत्मसंतोष की तलाश, तथा रिश्तों की पूँजी को सहेजने की आवश्यकता जैसे विषयों को सहजता से उद्घाटित किया है।
आ.आदर्श कुमार बेरी द्वारा लिखे शुभकामना–संदेश में कवि–मन की सरलता और भाव–संपन्नता पर हृदयपूर्ण विचार पढ़ने को मिलते हैं, वहीं आ. हंसराज सिंह ‘हंस’ ने भूमिका में उन्हें “यमराज मित्र देहदानी” कहकर विशेष संबोधन देते हुए उनकी रचनाओं के काव्य–कौशल, भाव–सार्थकता और चिंतन की गहराई को रेखांकित किया है।
१२६ कविताओं का विराट संसार
लेखक–परिचय के उपरांत 180 पृष्ठों में संकलित 126 कविताएँ जीवन के विविध आयामों को समेटे हुए पाठक को एक विस्तृत अनुभूति–प्रदेश में ले जाती हैं। इन कविताओं में जीवन की मिठास–कड़वाहट, सुख–दुख, आशा–निराशा, समसामयिक विषय, व्यंग्य, हास्य और गंभीरता—सब कुछ अपनी स्वाभाविक ऊर्जा के साथ उपस्थित है।
कवि की यह क्षमता उल्लेखनीय है कि वे सरल शब्दों में जटिल भाव–विषयों को इस तरह व्यक्त करते हैं कि पाठक मुस्कुराता भी है, सोचता भी है, और कहीं–कहीं भीतर तक आर्द्र भी हो उठता है।
कुछ प्रमुख रचनात्मक आयाम—
१. आध्यात्मिक संवेदना और आत्म–मंथन
माँ शारदे की वंदना से आरंभ होकर प्रभु शिव की अर्चना तक कवि की आध्यात्मिक बेचैनी, प्रश्न–वृष्टि और समाधान की अनवरत खोज स्पष्ट परिलक्षित होती है। ज्ञानव्यापी परिसर में उठते प्रश्न, मन की उलझनों का समाधान खोजती अभिव्यक्तियाँ इस संकलन को गहराई का स्वर देती हैं।
२. समसामयिकता और सामाजिक चेतना
गौ–पालन की अनिवार्यता, आधुनिक व्यवस्था पर व्यंग्य, शिष्टता बनाम अभिनय, जीवन की रफ्तार, दोहरे चरित्र, और मानवीय दूरी के बदलते अर्थ—इन सब पर कवि की दृष्टि अत्यंत सजग और मार्मिक है।
“मेरे घर भी आ जाइए” जैसी रचना न केवल व्यथा का उद्घाटन करती है, बल्कि पूर्वजों के सम्मान और स्मरण का सुकोमल आग्रह भी प्रस्तुत करती है।
३. पौराणिक–कथानक की नयी उड़ान
“कंस–रावण संवाद” कवि की सृजनात्मक कल्पना का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ राम–रावण के पारंपरिक चरित्रों के नए आयाम खुलते हैं। रावण को “राम का कृपा–पात्र” देखना कवि की दृष्टि को नयी व्याख्या और साहित्यिक उड़ान प्रदान करता है।
राम आएंगे, श्री कृष्ण, माँ कौशल्या आदि पर रचित कवितायें उनकी आस्था और पौराणिक ज्ञान का दर्पण है|
४. उत्सव–परंपरा और सांस्कृतिक बोध
दीपावली, करवा चौथ, जन्माष्टमी, पितृ पक्ष, बसंत पंचमी जैसे पर्वों पर आधारित कविताएँ भारतीय संस्कृति के प्रति कवि की अगाध श्रद्धा को दर्शाती हैं। हर उत्सव पर उनकी दृष्टि केवल अनुष्ठानिक नहीं, बल्कि भाव–सार तक पहुँचने वाली है।
५. रिश्तों का संसार और अंतर्मन की कोमलता
जीवन–साथी पर लिखी कविताएँ, पारिवारिक रिश्तों के नाजुक तार, तथा संबंधों की मिठास–तीक्ष्णता—इन सबका वर्णन अत्यंत संवेदनशीलता से हुआ है।
इन रचनाओं में कवि के कोमल भाव और निरीह हृदय की झलक स्पष्ट मिलती है।
सुधीर श्रीवास्तव का यह संकलन सचमुच ‘गागर में सागर’ समेटने का सफल प्रयास प्रतीत होता है।
जीवन के अनेक रंग—व्यथा, हास्य, प्रहसन, दर्शन, प्रेम, व्यंग्य, आध्यात्म, समसामयिक चिंता—सब एक ही धारा में प्रवाहित होते दिखते हैं।
सत्य तो यह है कि कम समय में 126 रचनाओं का पूर्ण समीक्षा–आकलन किसी भी समीक्षक के लिए चुनौतीपूर्ण है।
फिर भी यह निर्विवाद है कि यह कृति कवि के बहुमुखी व्यक्तित्व, भाषिक सरलता, भाव–गहराई, और सृजन–संपन्नता का प्रमाण–स्तंभ बनकर सामने आती है।
यह पुस्तक निश्चय ही पठनीय, संग्रहणीय और विचारणीय है।सुधीर श्रीवास्तव ने इसे लिखकर पाठकों को जीवन की एक ऐसी यात्रा सौंपी है, जो कट ही नहीं जाती, बल्कि पढ़ते-पढ़ते जीवंत हो उठती है।

लखनऊ उत्तर प्रदेश

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