साहित्य

पुस्तक समीक्षा:कुहासे को चीरता गीत संग्रह ‘भर दो प्यार वतन में’

सुधीर श्रीवास्तव

मेरा मानना है कि मानव भाषा विकास के साथ ही गीत का जन्म हुआ होगा। गीत संप्रेषण की वह विधा है जो मानव मस्तिष्क में उपजे भावों को गेयता की परिधि में रखकर या फिर यूँ कह लें कि स्वर संवाद श्रृंखला में पिरोकर किसी अन्य तक पहुँचाने का उचित एवं प्रभावी तथा हृदयगम्य माध्यम है। गीत के जन्म का कोई सही समय साहित्य के क्षेत्र में निश्चित नहीं किया गया, किन्तु गीत मानव अभिव्यक्ति होने के कारण मानव भाषा विकास के साथ ही माना जाना उचित होगा। वर्तमान में गीत शैली बिना संगीत के अधूरी या फिर यूँ कह लें कि नीरस सी लगती है जिसके कारण गीत का महत्व संगीत के साथ ही बेहतर लगता है।
‌ जीवन के हर क्षेत्र में मानव की जिजीविषा, समर्पण, दायित्व बोध और ईमानदारी का का बड़ा योगदान होता है। जिसे इसका आत्मज्ञान हो जाता है, उसे गतिशील रहने से कोई भी नहीं रोक सकता। कोई बाधा उसे विचलित नहीं कर सकती।
इसी क्रम में पारिवारिक, सामाजिक, आध्यात्मिक , राजनैतिक और साहित्यिक जिम्मेदारियों को निर्वहन करते हुए वरिष्ठ शिक्षिका /कवयित्री डॉ गीता पाण्डेय अपराजिता का गीत संग्रह “भर दो प्यार वतन में” पाठकों की अदालत में विविध सुरम्य गीतों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को तत्पर है।
ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व अपराजिता का दोहा कलश (2022), महासती अनसूया खंडकाव्य एवं छंद वाटिका (2023), अधूरे ख़्वाब ग़ज़ल संग्रह (2024) प्रकाशित हो चुका है।
ग्रामीण परिवेशी अपराजिता ने अपनी अलग पहचान बनाने की दिशा में एक बार कदम बढ़ाया तो उसे अपना जूनून बना लिया। जिसका उदाहरण शैक्षणिक सेवा में रहते हुए भी विभिन्न क्षेत्रों में उनकी उल्लेखनीय उपस्थिति से मिलता है।
संग्रह की रचनाओं को जब हम देखते पढ़ते महसूस करते हैं, तब गीता जी के गीत चिंतन का आभास होता है। जैसे……

“रामलला” की प्राण-प्रतिष्ठा से उपजे मन के भावों का शब्द चित्र खींचते हुए अपराजिता लिखती हैं –
महिमा रघुनंदन की गाओ, हृदय कलुषता को धोलेंं।
शुभ दिन शुचि संकल्प करें हम,जय श्री राम सदा बोलें।।
वर्षों से जिसकी आस लगाए, पल देखो वह है आया।
दर्शन होंगे रामलला के, अवध नगर है हर्षाया।।

“बहे प्रेम का धार” गीत में कवयित्री की अभिलाषा साफ झलकती है –
अंतर्मन की यह अभिलाषा, गूँजे आँगन किलकारी।
धरती का बनकर के सम्बल, महकायें दुनिया सारी॥

“महाराणा प्रताप” के शौर्य का सम्मान करने का आवाहन जन जन से करते हुए अपराजिता की ये पंक्तियां भावुक करती हैं –
आओ मिल सम्मान करें ,अपनी इस गर्वित थाती को।
शत शत वंदन अभिनंदन है, दो गज राणा की छाती को।।

“जीवन में मत आलस लाओ” में कवयित्री आवाहन करते हुए कहती है –
भूले भटके जो राही है,सत्य पंथ नित उन्हे दिखाओ।
आशा से परिपूरित मन हो,जीवन में मत आलस लाओ।।

“रंगोत्सव” में बरसाने की होली के रंग में सराबोर करती उनकी पंक्तियां बरबस ही होली की खुमारी की याद दिला देती हैं-
रंग अबीर लिए सब जन है, धूम मची बरसाने में ।
अंग अंग सब पुलकित होते,नटवर लाल नचाने में।।
करेंगोपियाँ हँसी ठिठोली,कान्हा भी मुस्काते हैं।
उर को नूतन ‐‐————

“बनेगा विश्व गुरु भारत” नामक गीत में कवयित्री का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर है। तभी तो वे लिखती हैं –
विश्व गुरु अब बनेगा भारत,दिनकर जैसा चमकेगा।
सबको है सम्मान बराबर, विश्व पटल पर गमकेगा।।

“चेत जरा लो” में वृक्षारोपण के प्रति सचेत करते हुए सुखद अहसास का भी बोध कराती हैं –
दम घुटने से स्वयं बचा लो, वृक्ष लगाओ हरे-भरे।
जहांँ बची हो खाली धरती, उसका सदुपयोग करें।।
शुद्ध वायु तब ग्रहण करें हम,खुलकर ले जमुहाई है।
सूनी-सूनी गलियांँ लगती,धुंध दिशा हर छाई है।।

“वृद्धावस्था” में संदेश के साथ वर्तमान का परिदृश्य भी प्रस्तुत करते हुए लिखा है –
वृद्ध खुशी जिस घर में होते, देव वहांँ है आते।
बड़े प्रेम से पाला जिनको, अब वे ही कतराते।।

“जन-जन का उत्थान करें” शीर्षक वाले गीत हिंदी की महिमा का बखान करते हुए कहती हैं –
कोतूहल उन्माद भरी है, लिखी शौर्य की गाथाएं।
हिंदी को रसपान करें सब, इसी धार में बह जाएं।।पप
नम्य सरलतम शब्दकोश का, शीर्ष नवल प्रतिमान करें।
हिंदी——————

“भर दो प्यार वतन में” में कवयित्री देशभक्ति का आवाहन करती हुई कहती हैं कि ऊंँचा रहे तिरंगा——-
देश भक्ति का भाव जगा दो, भारत के हर जन-मन में।
ऊंँचा रहे तिरंगा अपना,वह भर दो प्यार वतन में।।

“बेटी सदैव प्यारी लगती है” में गीता जी बेटियों में आये बदलाव का चित्रण करती हैं –
मातु-भारती की रक्षा में दमखम पूरा दिखलाती।
कभी आंँच अस्मत पर आए चंडी ज्वाला हैं बन जाती।।
डटी रहें ये मैदानों में,रण को छोड़ नहीं भगती।
सीधी-सीधी—————-

“जगो देश की नारी” में नारी शक्तियों को उद्वेलित करती हुई सीधे सीधे संवाद करने की कोशिश करते हुए ललकारती हैं –

चढ़ो नहीं बलि वेदी पर, साहस शौर्य पराक्रम जागे।
टिक ना पाए एक भी दुश्मन ,मुँह की खा कर भगे अभागे ।
ऐसा बल पौरुष अपनाओ, करो नहीं अब तो नादानी।।
लक्ष्मी, दुर्गा, बनो अहिल्या, रुप धरो मिल सब मर्दानी।।

इसके साथ ही अन्याय गीतों में भाव पक्ष को मजबूती से उकेरने के साथ अपनी सृजन क्षमता से प्रत्येक गीत को गरिमा पूर्ण आयाम देने का सार्थक प्रयास किया है। जिनमें बरखा रानी, संकल्प, सत्य का संबल, नए वर्ष का, अभिनंदन, होली है ये होली है, विजय दिवस, ऐसी अलख जगाना, गणतंत्र, कर्म, पश्चिमी सभ्यता, सैनिक, छोड़ें छाप अमिट मन में, वक्रतुंड हे महाकाय, वट सावित्री, मैं तो इंसान हूँ, भटके मन ये बंजारा, गीता स्नेह लगाओ, समरसता, चरणों की रज मैं पाऊँ, नियत नटी के आगे बेबस, मन नाच उठा पुरवाई में आदि आदि शीर्षक वाले गीत गीत संग्रह को पाठकों के मन में उतरने को उत्सुक हैं।
अपराजिता जी ने गीतों के माध्यम से विविध विषयों पर अपनी कलम चलाई है। जिसमें उनके आत्मविश्वास और व्यापक दृष्टिकोण का उदाहरण ही नहीं मिलता बल्कि विश्वास की रश्मियाँ देदीप्यमान हो रही है। जहाँ तक “अपराजिता” की लेखन शैली का सवाल है वह एक मँझे हुए कलमकार ंजैसी छवि को ज्यों की त्यों दर्पण के जैसा सामने रखने में सक्षम सी लग रही है।
मैं प्रस्तुत गीत संग्रह “भर दो प्यार वतन में” की सफलता के प्रति आशान्वित हूँ। मेरा विश्वास है कि संग्रह के गीत पाठकों के अंतर्मन में समाने में सफल होंगे।
…… और अंत में इंशा पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित इस गीत संग्रह के प्रकाशन हेतु गीता पाण्डेय अपराजिता जी को बधाइयां शुभकामनाएं देते हुए उनके सुखद भविष्य की मंगल कामना करता हूँ ।
असीम शुभेच्छाओं सहित…..

सुधीर श्रीवास्तव
(कवि/साहित्यकार)
गोण्डा उत्तर प्रदेश
8115285921

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