
कदम- कदम पर बड़ी परीक्षा,
कदम- कदम पर जांच,
पर जो सच की राह चले हैं,
कभी न आए आंच।
बलिदानी की हर गाथा में,
कुछ होते हिम्मत वाले,
कुछ के बोल तो निकले लेकिन,
कुछ के मुंह पर हैं ताले।
जांचे-परखें,अनुभव करके,
फिर यह युक्ति बांच,
पर जो सच की राह चले हैं,
कभी न आए आंच।
वर्षों से जो प्यास दबी थी,
खुद से आज उभर आई,
जाने कबसे आस लगी थी,
नवजीवन ले अंगराई।
कुछ के दिल तो पत्थर जैसे,
पर कुछ दिल हैं कांच।
पर जो सच की राह चले हैं,
कभी न आए आंच।
जाने कितने तूफानों को,
हमने हठ से मोड़ा है,
डर से डरकर भाग गए जो,
कहते उसे भगोड़ा है।
आस का पंछी उड़ता जाय,
मिले सफलता नाच।
पर जो सच की राह चले हैं,
कभी न आए आंच।
कवि डॉ प्रीतम कुमार झा।
गीतकार सह शिक्षक,
महुआ, वैशाली बिहार।




