साहित्य

सहारा का दीप

डा.सुमन मेहरोत्रा

सहारा का दीप

रिश्तों की मिट्टी में जब, विश्वास अंकुराता है।
भाईचारा तब मानवता का दीप जलाता है।

मन में मैत्री का दर्पण, स्वच्छ उजाला देता है।
हर दिल का कोना–कोना, प्रेम से भर देता है।

दुख में कंधे मिल जाते, सुख में हँसी बिखर जाती।
नन्ही-सी मुस्कान भी, एकता की शक्ति बन जाती।

राह कठिन हो या सरल, कदम साथ चलते रहते।
बंधन कोई मजबूरी नहीं—दिल से जुड़ते रहते।

भाषा–धर्म भिन्न सही, पर धड़कन सबकी एक समान।
रंग न पूछे प्यार कभी, बस स्पर्श करे मानव-जान।

जो हाथ थाम ले सच्चा, वही संसार सजाता।
ममता सी कोमल धारा, मन के बीच बह जाता।

जहाँ नफरत की आँधी थी, वहाँ प्रेम फूल खिलाता।
भाईचारा हर बार अँधेरों में उजियारा लाता।

चलो जग में ऐसी हवा, फिर आज चलाएँ हम।
भाईचारे की सुगंध से—मानवता महकाएँ हम।

वसुधा से सीखो स्नेहिल संवाद,
भाईचारे का पाठ, बाँध ले हर जीव का साथ।

वसुधैव कुटुम्बकम्, न केवल एक मंत्र।
मानवता का दीपक, रखता जग को केंद्र।

डा.सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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