
कोई भी तो साथ नहीं है,
कोई भी तो पास नहीं है।
बस मैं हूं तन्हाई है,
अब तो कोई खास नहीं है।
बोझिल आंखें टूटे सपने,
आंखों को इंतजार नहीं है।
रमे हुए हैं सब अपने में,
अपनों का ऐतबार नहीं है।
हाथ भी छूटा साथ भी छूटा ,
सपनों का दर्पण है टूटा।
कैसे दिल का हाल सुनाऊं,
खुशियों ने हर बार है लूटा।
सितम सह गए हम अपनों का,
हमको तो दीदार नेलूटा ।
अपना कोई साथ चले बस
एक अधूरे एहसास ने लूटा।
तन्हाई के घाव बहुत हैं ,
मरहम वाली बात नहीं है।
हाल किसी ने हंसकर पूछा ,
देकर ऐतबार है लूटा।
सांस सांस उम्मीद बंधी है ,
चौखट पर कोई पांव नहीं है।
दूर हो गई विंध्य अपनों से,
कतरा कतरा प्यार ने लूटा।।
साधना मिश्रा विंध्य
लखनऊ उत्तर प्रदेश




