साहित्य

सर्दी

शशि कांत श्रीवास्तव

सर्दी के इस नर्म मौसम में
सुबह सुबह..,
नर्म ओस पर घूमना
उतना ही अच्छा लगता है,
जितना कि,
पत्तों से छन कर आती हुई
नर्म -नर्म धूप की गर्मी का
वो अहसास,
मन को गर्म कर जाता है ,
सर्दी के इस नर्म मौसम में |
ओस से ये भीगी हवायें,
जब -जब,
चूमती हैं कपोलों को तुम्हारे ,
तब -तब ,
उसके सिहरन की शिकन
उभर आती थी,
तुम्हारी -इन आँखों में,
वहीं..,
जब ये सहलाती हैं हौले हौले
केशों को तुम्हारे ,
और जाते जाते
छोड़ जाती हैं ये बूंदें मोती के,
केशों पर और अधरों पर -जो
इन रश्मियों के प्रकाश में
स्वर्ण और रजत मुक्ता सी
प्रतीत होती हैं ….,
सर्दी के इस नर्म मौसम में ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेरा बस्सी मोहाली, पंजाब
15-09-2020

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