
सर्दी की ये सर्द हवाएँ,
कुछ राज़ पुराने खोल गईं।
सूखी शाखों पर धूप ठिठक,
मुस्कान नई-सी बोल गईं।
ओस भरी हर पत्ती जैसे,
मोती की पहचान लगे।
शरद ऋतु अपनी किशोरता में,
फिर से जवान-जवान लगे।
हवा कभी चुपके गुनगुनाती,
कभी गीत नए सुनाती है।
मन के खाली पन्नों पर ये,
अनगिन शब्द जमाती है।
धूप किसी अल्हड़ बालिका-सी,
घर-आँगन में नाचती फिरे।
सर्दी की कोमल थपकन में,
मन भी धीरे-धीरे खिले।
नदियों के होंठों पर हल्की,
कुहासे की झिलमिल चादर है।
और खेतों में फसल बदलने,
का मंगल-सा अवसर है।
सर्दी की ये सर्द हवाएँ,
हर दिल में उजियारा भरतीं।
शरद-यौवन के इस मौसम में,
जीवन को फिर से सँवरतीं।
चलो सपनों को ओढ़ के आगे,
मौसम संग मुस्काएँ हम
ठंडी-ठंडी इन बयारों में दिलकश
नया सवेरा गुनगुनाएँ हम।
दिनेश पाल सिंह दिलकश 💛
चन्दौसी जनपद संभल उत्तर प्रदेश




