
सत्य की छाया में फलता- फूलता झूठ : एक दार्शनिक विवेचन
चुनाव हो, युद्ध हो या फिर प्रेम हो- झूठ तीनों स्थान पर चलता है। चलता ही नहीं है अपितु दौडता है।यह झूठ यदि किसी गरीब द्वारा बोला जाये तो वह थोड़ी दूर तक घिसट पिसटकर चलता है और तुरंत हांफकर गिर जाता है। लेकिन यदि वही झूठ यदि किसी बड़े नेता, धर्मगुरु, सुधारक या वैज्ञानिक द्वारा बोला जाये तो वह राकेट की गति से दौड़ता है।उस झूठ को झूठ कहना या झूठ सिद्ध करना लगभग असम्भव होता है। जनमानस तो क्या बड़े बड़े प्रसिद्धि प्राप्त लोग भी उस पर तुरंत भरोसा कर लेते हैं। संदेह करने की कोई गुंजाइश रहती ही नहीं है। कहते हैं कि झूठ के पैर नहीं होते हैं। लेकिन सच इससे भी आगे बहुत विराट है। वास्तव में झूठ के न तो पैर होते हैं,न हाथ होते हैं,न आंखें होती हैं,न कान होते हैं तथा न ही बुद्धि होती है। लेकिन फिर भी झूठ इतना तीव्रगामी, प्रभावी और विराट होता है कि हर कोई उस पर भरोसा कर लेता है।एक तरह से झूठ शंकराचार्य की माया के समान महाशक्तिशाली है।वह न होते हुये भी होता है।वह न होते हुये भी सबसे प्रभावी भूमिका निभाता है।वह अनिर्वचनीय है।वह समस्त संसार को बांधे हुये है।वह ‘है’ को ‘नहीं’ तथा ‘नहीं’ को ‘है’ कर देने में समर्थ होता है।वह ब्रह्म तक पर आवरण डालने में समर्थ है।वह अविद्या बनकर आत्मा के वास्तविक स्वरूप को छिपा देता है तो ब्रह्म पर आवरण डालकर उसे ईश्वर बना देता है। जैसे अद्वैतवाद में सृष्टि की उत्पत्ति माया से होती है, ठीक उसी प्रकार से झूठ में एक अलग ही संसार को बनाने की शक्ति मौजूद है।झूठ उतना ही शक्तिशाली है, जितनी शक्तिशाली माया है।जो इस मायारूपी झूठ को जान लेता है,वही मुक्ति या मोक्ष या अपवर्ग या कैवल्य या केवली या निर्वाण का अधिकारी बनता है। इतना बल है झूठ में।
राजनीति, मजहब, संप्रदाय, व्यापार, दुकानदारी, खेती-बाड़ी, शिक्षा, विज्ञान, न्यायालय और योगाभ्यास आदि कहां पर झूठ नहीं चलता है? सर्वत्र झूठ का शासन है। सर्वत्र झूठ का बोलबाला है। कहने को कोई कुछ भी कहता रहे लेकिन किसी का भी काम झूठ के बिना नहीं चलता है।हरेक क्षेत्र के छोटे बड़े लोगों को सच से अधिक झूठ पर भरोसा होता है। धर्मगुरु बिना कर्मों का भोग किये ही पापमुक्ति करवाकर मोक्ष दिलवाने का झूठ बोलते हैं। आजकल के योगी योगाभ्यास से व्यक्ति की हरेक समस्या का निवारण करने का झूठ बोलते हैं। व्यापारी घटिया को बढ़िया,बैंक लोन,काला धन और टैक्सचोरी का झूठ बोलते हैं। दुकानदार सामान में मिलावट करके उसे शुद्ध कहने का झूठ बोलते हैं। न्यायालय तो झूठ का अड्डा ही होता है। वहां पर गीता की कसम खाकर झूठे गवाह,झूठी दलीलें, झूठे निर्णय, भ्रष्टाचार और हार को जीत में तथा जीत को हार में बदलने का झूठ बोलते हैं। नेता लोग गरीबी, बदहाली, अभाव, भूखमरी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को खत्म करने के झूठे वायदे करके चुनाव जीत जाते हैं। वैज्ञानिक लोग तार्किकता आधुनिकता,समानता, तकनीक, निष्पक्षता के झूठ बोलकर धरती को स्वर्ग बनाने के झूठे दावे करते हैं। दार्शनिक, समाज विज्ञानी,भाषायी,सुधारवादी और जातिवादी आदि साहित्यिक अकादमियां चापलूसी,भ्रष्टाचरण, वैचारिक प्रदुषण से प्रभावित होकर तथाकथित महान लोगों को पुरस्कार देने में झूठ का सहारा लेती हैं। खेती-बाड़ी में किसान,ग्राहक,आढती और बड़े व्यापारी कदम कदम पर झूठ से काम करते हैं। पुलिस विभाग में झूठ ही झूठ ही चलता है। शिक्षा में प्राथमिक कक्षाओं के शिक्षकों से लेकर विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों तक झूठ का सहारा लेकर काम करते हैं। यहां तक कि शोध- आलेख और शोध -प्रबंध तक लिखने में झूठ चलता है।आखिर झूठ कहां पर नहीं चलता है? नीचे से लेकर ऊपर तक झूठ का साम्राज्य है।
डॉ. शीलक राम आचार्य
वैदिक योगशाला कुरुक्षेत्र
(हरियाणा)



