साहित्य

सुविचार

अरुण दिव्यांश

प्रकृति से कुछ तय नहीं ,
बिन उत्पत्ति है क्षय नहीं ।
बिन गला होता लय नहीं ,
बिन संघर्ष मिले जय नहीं ।।
मित्रता हेतु कोई अय नहीं ,
शत्रुता होती है क्रय नहीं ।
बिन माता कोई गय नहीं ,
बिन जीवन कोई चय नहीं ।।
मानवता बिन है दय नहीं ,
जीवन कैसा जब द्वय नहीं ।
जीवन नहीं जब नय नहीं ,
चरित्र सा उज्ज्वल पय नहीं ।।
बिन कल बल छल भय नहीं ,
जहाॅं मानवता वहाॅं मय नहीं ।
है जीवन क्या जब रय नहीं ,
यश कीर्ति प्रीति बिन वय नहीं ।।
बिन स्वास्थ्य कोई शय नहीं ,
सत्यता में कोई संशय नहीं ।
सृष्टि होती कोई बिन त्रय नहीं ,
वह जीवन व्यर्थ जब हय नहीं ।।

शब्दार्थ : अय = हथियार , गय = संतान , चय = नींव , दय = करुणा , दया , कृपा , द्वय = युगल , दो , नय = नीति , न्याय , नम्रता , पय = दूध , मय = दानव , रय = प्रवाह , वय = उम्र , अवस्था , आयु , शय = नींद , संशय = भ्रम , त्रय = तीन , हय = हया , शर्म , लोक – लाज ।

अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।

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