आलेख

स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और पत्रकारिता का नया संघर्ष

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष

डाॅ.शिवेश्वर दत्त पाण्डेय

हर वर्ष 16 नवम्बर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय प्रेस दिवस केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की उस मूल आत्मा का संकेत है, जो प्रेस की स्वतंत्रता में निहित है। 1966 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के गठन के साथ स्थापित यह दिवस पत्रकारिता की मर्यादा, नैतिकता और दायित्व के प्रति एक सामूहिक जागरूकता का प्रतीक बन चुका है। आज जब सूचना का संसार पहले से कहीं अधिक जटिल, तेज और बहुआयामी हो चुका है, तब इस दिवस के मायने और गहरे हो गए हैं।

भारत का लोकतंत्र धन, जन और मन तीनों स्तरों पर विविधताओं से भरा है। ऐसी परिस्थिति में स्वतंत्र, निष्पक्ष और संवेदनशील प्रेस केवल एक संस्था नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक चेतना का अनिवार्य अंग है। प्रेस जनता और सत्ता के बीच सेतु का काम करता है । उसके निष्पादन में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है ,नैतिकता, संतुलन और तथ्य आधारित रिपोर्टिंग। लेकिन आज यह भूमिका बढ़ते दबावों के कारण कठिन होती जा रही है। राजनीतिक प्रभाव, कॉरपोरेट हस्तक्षेप, सोशल मीडिया जनित भ्रम और फेक न्यूज़ का प्रसार पत्रकारिता की विश्वसनीयता को चुनौती दे रहे हैं।

सूचना क्रांति ने समाचार की गति को बढ़ाया है, लेकिन सत्य की गहराई को कई बार सीमित कर दिया है। वायरल होने की होड़ में तथ्य अक्सर हाशिये पर चले जाते हैं। यह प्रवृत्ति समाज को भ्रमित करती है और लोकतांत्रिक विमर्श को कमजोर करती है। ऐसे समय में पत्रकारिता की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि वह सत्य की पुष्टि करे, शोरगुल से दूर रहे और जनता तक सूचनाओं का संतुलित रूप पहुंचाए।

कॉरपोरेट नियंत्रण और टीआरपी की प्रतिस्पर्धा ने संपादकीय स्वतंत्रता को प्रभावित किया है। जनहित के मुद्दे कई बार साइडलाइन हो जाते हैं और बाजार के दबावों में पत्रकारिता का मूल उद्देश्य पीछे छूटने लगता है। इस चुनौती से निपटने के लिए मीडिया को आर्थिक स्वतंत्रता के वैकल्पिक मॉडल खोजने होंगे, ताकि वह किसी दबाव में आए बिना जनपक्षधर बने रह सके।

पत्रकारों की सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता है। जमीन पर काम करने वाले कई पत्रकार खतरों का सामना करते हैं धमकियाँ, हमले, मुकदमे और सोशल मीडिया पर अपमानजनक हमले उनका मनोबल कमजोर करते हैं। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में पत्रकारों की सुरक्षा केवल उनका अधिकार नहीं, बल्कि जनता के सूचना के अधिकार की भी रक्षा है। इसलिए ज़रूरी है कि सरकारें और संस्थाएँ पत्रकारों के संरक्षण हेतु ठोस नीतियाँ लागू करें।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ असीमित स्वतंत्रता नहीं, बल्कि जिम्मेदार स्वतंत्रता है। पत्रकारिता का आधार सत्य, संवेदना और सामाजिक उत्तरदायित्व है। यदि पत्रकारिता पक्षपाती हो जाए या विचारधारा विशेष की आवाज बन जाए, तो लोकतंत्र के लिए खतरा उत्पन्न होता है। इसलिए प्रेस को आत्मनियंत्रण, नैतिकता और निष्पक्षता के मूल्यों को सदैव अग्रस्थ रखने की आवश्यकता है।

आज हमें ऐसी पत्रकारिता की जरूरत है जो सत्ता से प्रश्न पूछ सके, समाज की आवाज़ बन सके, कमजोर वर्गों के मुद्दों को प्राथमिकता दे सके और तथ्यों की रक्षा को सर्वोच्च माने। यह समय है कि मीडिया संस्थाएँ आत्ममंथन करें और पत्रकारिता के मूल स्वभाव सत्य और जनहित को आधार बनाकर आगे बढ़ें।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस का संदेश स्पष्ट है स्वतंत्र प्रेस एक स्वस्थ लोकतंत्र की बुनियाद है। और जब प्रेस स्वयं सशक्त होगा, सत्यनिष्ठ होगा और नैतिकता की कसौटी पर खरा उतरेगा, तभी लोकतंत्र की जड़ें गहरे और मजबूत होंगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवम दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह के समूह सम्पादक हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!