साहित्य

स्वयं से रिश्ता

ऋतु गर्ग

स्वयं ही स्वयं के साथ रिश्ता बना लो, वह क्या कम है।
खुद को भी तुम पहचान लो, वह क्या कम है।
अजनबी शहर में ढूंढते हो अपनों को,
तुम स्वयं से ही दोस्ती कर लो, वह क्या कम है।

कौन काम आएगा तुम्हारे — कोई नहीं चलेगा साथ तुम्हारे,
स्वयं के कदमों पर विश्वास करो, वह क्या कम है।
ज़माने का दस्तूर यही है —
खुशियों में साथ, ग़म में अकेला छोड़ देंगे तुम्हें।
हर वक्त तन्हा छोड़ देंगे,
खुद से ही एक रिश्ता निभा लो, वह क्या कम है।

इस कविता को लिखते समय मेरे मन में यही विचार था कि हम सब अपने जीवन की दौड़ में दूसरों की उम्मीदों को पूरा करते-करते खुद से दूर हो जाते हैं।
लेकिन जब हम ठहर कर अपने भीतर झाँकते हैं, तब हमें एहसास होता है कि हमारी सबसे बड़ी ताक़त — हम स्वयं है।
यह कविता उसी एहसास की अभिव्यक्ति है — खुद से जुड़ने, खुद को स्वीकारने और खुद पर विश्वास करने की प्रेरणा।”

ऋतु गर्ग, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!