साहित्य

तेरी हो या मेरी हो

चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा "अकिंचन"

माँ तो सबकी अति प्यारी होती तेरी हो या मेरी हो,
फर्क मगर पड़ता है यारों अगर कहीं जोरु की हो।
बहन तो सबकी है प्यारी होती तेरी हो या मेरी हो,
फर्क मगर पड़ता है यारों अगर कहीं जोरु की हो।
भाई सगे सब होते हैं प्यारे वो तेरे हों या मेरे हों,
फर्क मगर पड़ता है यारोंअगर कहीं जोरु के हों।
सखा सखी सब प्यारे होते हैं वो तेरे हों या मेरे हों,
फर्क मगर पड़ता है यारों अगर कहीं जोरु के हों।
अर्थहीन लगते सब रिश्ते वो तेरे हों या मेरे हों,
फर्क मगर पड़ता है यारों अगर कहीं जोरु के हों।
यारों उम्र है कटती गुणा भाग में वो तेरी हो या मेरी हो,
तिरसठ बनते छत्तीस से रिश्ते पहल अगर जोरु की हो।
चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा “अकिंचन”गोरखपुर
चलभाष -९३०५९८८२५२

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