
प्रहर, दोपहर …
बढ़ रही ठंडी लहर,
हुआ शीत का आगमन,
महक उठा घर, आँगन
प्रकृति सजा रही धरा- गगन
लुभावने हुए मन,
है पुष्पित हरित उपवन
लय मधुरिम पायल छन छनन;
शुभ्र चाँदनी, बिछी घर-आँगन;
बढ़ने लगी ठंड में आकर्षण
हो रही चाँदनी से
सिंचित मेरी चितवन;
चमकने लगा
मेरे हाथों चूड़ी, कंगन
रहेंगे, प्रियतम मुझमें ही मगन;
शीत ऋतु,देंना उन्हें नव जीवन।
कविता ए झा
नवी मुम्बई



