साहित्य

तोड़ तू अपनी अंगड़ाई

डॉ उदयवीर सिंह

टूटे जब अंगड़ाई तेरी,
सपनों का मंजर याद आए।
हो मन भ्रमित जब तेरा,
श्रम मात पिता का याद आए।।
हुए पग घायल पथ पर,
बहता लहू व्यर्थ न हो जाएं।
डर पथ शूलों का कहीं
सपनों से दूर न ले जाए।।
धूमिल होती आशा तेरी,
कहीं निराशा में न बदल जाए।
उपवन तेरे सपनों का,
नजरों से न ओझल हो जाए।
तोड़ तू अपनी अंगड़ाई,
कही फिर से नीद न आ जाय।।
टूटे जब अंगड़ाई तेरी,
सपनों का मंजर याद आए।

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