टूटे जब अंगड़ाई तेरी,
सपनों का मंजर याद आए।
हो मन भ्रमित जब तेरा,
श्रम मात पिता का याद आए।।
हुए पग घायल पथ पर,
बहता लहू व्यर्थ न हो जाएं।
डर पथ शूलों का कहीं
सपनों से दूर न ले जाए।।
धूमिल होती आशा तेरी,
कहीं निराशा में न बदल जाए।
उपवन तेरे सपनों का,
नजरों से न ओझल हो जाए।
तोड़ तू अपनी अंगड़ाई,
कही फिर से नीद न आ जाय।।
टूटे जब अंगड़ाई तेरी,
सपनों का मंजर याद आए।




