
तोहरा बदे हमरा भीतर आग बा
सबका दुश्मनी त हमरा फाग बा
पेट के भूख बुला ई अमावस ह
पलायन में कहां नसीब साग बा
तोहरा हँसी से नागफनि ना उहे
इहे नसीब में खुशी के बाग बा
गांव के माटी ना दे पावे ले रोटी
बाकि माटी में कौनो ना दाग बा
टिकुली के चमक बाटे जेहन में
इहे जिनगी जिनगी के राग बा।
विद्या शंकर विद्यार्थी रामगढ़, झारखंड
रचना मौलिक स्वरचित




