

उफ!!!!!
नाक में दम कर रखा है
दंग रह गया मैं
क्या मिला आँखों में धूल झोंक कर
आँख चुराने का काम किया
कोल्हू का बैल बना था मैं
गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा
अकल के दुश्मन,
कुआं खोदा
अंधा बना दिया
जा,अपनी खिचड़ी अलग पका
तेरा मुँह नहीं लगता
सोचा था कंधे से कंधा मिलाओगे
दिन दुनी रात चौगुनी प्रगति करेंगे
एड़ी चोटी का पसीना एक करेंगे
आकाश के तारे तोड़ेंगे
आँखें खुल गयी मेरी
अंगूठा दिखा दिया
अँधेरे घर का उजाला समझा था
गर्दन झुका दिया
दांत पीसना रोड़े अटकाना
तेरी आदत थी
हाथ मलता रह गया
फूला न समा रहे हो?
टेड़ी खीर कर दी ज़िन्दगी
बहा दी न उल्टी गंगा
आपे से बाहर न हो जाऊँ
चल चल चल…
नौ -दो-ग्यारह हो जा….
(गोवर्धनसिंह फ़ौदार ‘सच्चिदानन्द’ )
पता :मोरिश्यस।




