
आज की शाम ऐसी होगा , सोचा तो नहीं था , बस तुम्हें याद करते हुए वैसे ही सालो बाद घर से दूर निकले बाहर बच्चों के साथ कुछ समय निकाल कर अच्छा लगेगा तुम्हें जान कर, फिर बच्चों को भी अच्छा लगेगा यह सोच कह दिया कि कहीं बाहर चलेंगे पोती का जन्म दिन मनाने
और चल दिया पूरे सफर में याद करता रहा तुम्हें। तुम्हें ही क्यों उन सभी अपनों को जो तुम जैसे मेरा ख्याल रखते हुए चले गए दुनिया से और मुझे सदा की तरह आज भी साथ दे जिंदा रखें सक्रिय रखते हुए, बहुत कुछ कर तुम्हारी दुआओं को स्नेह प्यार और आशीष को सार्थक कर रहे है
अच्छा लग रहा था तीसरी जिंदगी का सुखद अहसास यह फिर भी सत्य यह था कि खाली खाली महसूस कर रहा था कि कोई एक ही सही होता दिल के करीब का उसे भी कितना अच्छी लगता यह पल और यह देख शायद पूर्ण खुशी होती इन पलों की , याद भी किया तुम्हें खूब बहू से बात करते हुए यह सोच कर की तुम भी देखे रही होगी इन सूख सुकून के पल को, बस यह सोच कर
आज कल कुछ बदला हुआ हूँ न चाह कर भी अच्छा लग रहा है यह जीवन बताता हूं सभी को ताकि उन्हें भी अच्छा लगे, सब कुछ कर रहा हूं करूंगा पर अनायास इन पलों को जीते हुए तुम याद आ जाती हो पूर्ण तासीर के साथ अपनी उपस्थिति लिए और आँखें भर आती हैं तब उन आंखों को सब की नज़र से बचना है ताकि किसी को बच्चों को यह महसूस नहीं हो कि मैं तुम्हें याद कर रहा हूं बहुत ही मुश्किल पल होते है
काश यह दुनिया समझती अकेलापन का अहसास जब कितने ही अपने करीब हैं फिर भी किसी एक ही अपने की याद झकझोर दे और उसकी कमी सारी दुनिया की तमाम खुशी के आगे कम लगे काश तुम भी होती बार बार यह प्रश्न दिमाग में आता है और तब केवल उस ईश्वर के दिए इस यातना को माफ़ करने का मन बिल्कुल नहीं होता है और मन से निकल जाता है
तुमने अच्छा नहीं किया प्रभु , मेरी खुशी को छीन कर ,,, सिवा उसे कोसने के अलावा कर भी क्यों सकता हूं और बैठ जाता हूं फिर अपनी कार में परसन हो कर ताकि किसी को यह न लगे कि मुझे अच्छा लगा पार इतना नहीं जानते हैं बच्चे भी नहीं जान रहे ऐसा नहीं क्यों कि कमी वो भी सब महसूस कर रहे हैं बोल कोई नहीं रहा है बस यह सत्य तो ईश्वर तुम भी समझ रहे हो
खैर प्रणाम सत् सत् प्रणाम करता हूं जो दिया उसे वंदन करता हूं और सुखद अहसास लिए जी जाता हूं सदा ही खुश प्रसन्न हो
डॉ रामशंकर चंचल
एक जीवंत ,सजीव चित्र एक यादगार पल कालजयी पल का



