आलेख

विनोबा विचार और आज का समाज

कुमुद रंजन सिंह

कुमुद रंजन सिंह, समाजसेवी, युवा चिंतक एवं अधिवक्ता

भारत की आत्मा यदि कहीं बसती है, तो वह उसकी मानवीय चेतना और आध्यात्मिक मूल्यों में है।
और इन्हीं मूल्यों के साक्षात् प्रतीक थे — आचार्य विनोबा भावे, जिन्होंने सत्य, सेवा, करुणा और ग्रामस्वराज को जीवन का ध्येय बनाया।
आज जब समाज मूल्यहीनता, राजनीति की विभाजनकारी प्रवृत्तियों और नैतिक पतन के संकट से गुजर रहा है, तब विनोबा भावे के विचार एक प्रकाशस्तंभ की तरह हमें दिशा दिखाते हैं।

– विनोबा का दर्शन — आत्मा का जागरण

विनोबा भावे का जीवन साधना था — उन्होंने किसी से संघर्ष नहीं किया, बल्कि मनुष्यता के हृदय में करुणा जगाने का प्रयास किया।
उनकी दृष्टि में सुधार कानूनों से नहीं, चेतना के परिवर्तन से आता है।
उनका यह कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है —

> “यदि समाज को बदलना है तो पहले स्वयं को बदलो; क्योंकि समाज व्यक्ति से बनता है, व्यक्ति से ही बिगड़ता है।”

आज के उपभोक्तावादी समाज में जहाँ सुख और सफलता को धन और पद से मापा जाता है, वहाँ विनोबा हमें स्मरण कराते हैं कि चरित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा धन है।

भूमि दान आंदोलन — करुणा का प्रयोग

विनोबा का “भूमि दान आंदोलन” केवल सामाजिक सुधार नहीं, बल्कि अहिंसक क्रांति था।
उन्होंने सत्ता से नहीं, मानवता से संवाद स्थापित किया।
वे गाँव-गाँव घूमे, और लोगों से कहा —

> “जिसे जमीन की जरूरत है, उसे दीजिए; यह समाज की पुनर्रचना का पहला कदम है।”

आज जब भूमि, पूंजी और संसाधनों पर कुछ मुट्ठीभर लोगों का अधिकार बढ़ता जा रहा है, तब विनोबा का यह संदेश सामाजिक न्याय की दिशा में सबसे सरल और गहरा उपाय बनकर सामने आता है।

– ग्रामस्वराज — आत्मनिर्भरता की पुकार

विनोबा भावे का ग्रामस्वराज कोई आदर्श कल्पना नहीं थी; वह आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वावलंबन की संकल्पना थी।
उनका मानना था कि विकास ऊपर से नहीं, नीचे से आता है।
आज भी भारत का भविष्य गाँवों में बसता है —
परंतु इन गाँवों को जीवित रखने के लिए विनोबा की तरह हमें आत्मनिर्भरता, शिक्षा और सहयोग की भावना को पुनः जगाना होगा।

.विनोबा और आज की पत्रकारिता

विनोबा भावे ने कहा था —

> “मीडिया का कार्य समाज में विवेक जगाना है, विवाद नहीं।”

आज जब पत्रकारिता कई बार सनसनी और पक्षपात के प्रभाव में आती दिखती है, तब उनकी यह सीख हर पत्रकार के लिए दिशासूचक बन सकती है।
नेशनल जर्नलिस्ट एसोसिएशन और आचार्य कुल पत्रकारिता प्रकोष्ठ इसी दिशा में कार्य कर रहे हैं —
जहाँ पत्रकारों को केवल समाचार वाहक नहीं, बल्कि नैतिक प्रहरी बनने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

पत्रकारिता को यदि विनोबा की दृष्टि से देखा जाए, तो वह जनजागरण का माध्यम है — सत्ता का नहीं, समाज का प्रतिबिंब।

.आज की आवश्यकता — विनोबा को जीना

आज के समाज में विनोबा विचार को आत्मसात करने का अर्थ है —

जीवन में सादगी, सेवा और संयम को अपनाना।

संवाद, करुणा और अहिंसा को व्यवहार का हिस्सा बनाना।

विकास को मानवता के केंद्र में रखकर देखना।

पत्रकारिता, शिक्षा और समाजसेवा में नैतिक चेतना को पुनर्स्थापित करना।

विनोबा ने हमें सिखाया कि सुधार किसी आंदोलन से नहीं, आत्मा की जागृति से आता है।
और जब व्यक्ति की आत्मा जागृत होती है, तब राष्ट्र स्वतः ही श्रेष्ठ बनता है।

अंत में,
आज जब मानवता विभाजन, हिंसा और स्वार्थ के अंधकार में उलझी है,
तब विनोबा भावे के विचार ही वह ज्योति हैं जो आत्मा से समाज तक प्रकाश फैलाती है।
उनका जीवन यह संदेश देता है —

> “सेवा ही साधना है, और साधना ही मनुष्यत्व का सर्वोच्च रूप।”

यदि हम उनके विचारों को अपने कर्म और जीवन में उतार सकें,
तो भारत न केवल आर्थिक, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी आत्मनिर्भर और समृद्ध बन सकता है।

कुमुद रंजन सिंह, समाजसेवी, युवा चिंतक एवं अधिवक्ता

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