
पुरुष बनकर जीना भी कहाॅं सहज होता है
हमेशा ही ज़िम्मेदारियों का बोझ लिए चलता है,
वंश की इज़्ज़त का झंडा लिए चलता है,
पुरुष बनकर जीना भी कहाॅं सहज होता है!!!
नहीं सहेजता वह, अपनी कमाई अपने लिए
उसका बटुआ तो है पूरे परिवार के लिए
ज़िम्मेदारियों की गठरी उठा कर
सुबह से रात तक भागता पुरुष
घर -परिवार की बेहतरी के लिए
कोल्हू के बैल ज्यों पिसता पुरुष
पिता की दुकानदारी में हाथ बंटाते हुए
कक्षा का सिलेबस निपटाता पुरुष
अपनी हमउम्र बहन की भी
रखवाली का दायित्व उठाता पुरुष
पत्नी और परिवार में संतुलन बैठाने की
अनवरत कोशिश करता पुरुष
और कभी-कभी दोनों के बीच,
सैंडविच ज्यों पिसता पुरुष
पुरुष बनकर जीना भी कहाॅं सहज होता है!!!
बच्चों को बेहतर सुख -सुविधा देने के लिए
डबल शिफ्ट में काम करता पुरुष
बुज़ुर्ग माता-पिता की सेवा और
बुढ़ापे की लाठी बनने का जतन करता पुरुष
पत्नी के लिए दुनियाॅं से पंगा लेता पुरुष
पत्नी के नाज़ो-नख़रे शौक़ से उठाता पुरुष
फिर भी गंवार -आवारा- नकारा जैसे
विशेषणों को झेलता पुरुष
क्रिटिकल अवस्था में इमरजेंसी में भर्ती पिता
बाहर आंसू टपकाता बेटा
लड़का होकर रोता है ?
रिश्तेदारों के उलाहने
क्या लड़कों में जज़्बात नहीं होते ?
सवाल बेटे का
बिल्कुल होते हैं ..उत्तर मां का
हक़ है उन्हें भी मन हल्का करने का
मगर पुरुष हो, आंसू मत बहाओ.. की सीख तले
बनावटी सख़्ती को ओढ़ता पुरुष
अपने दर्द के घूॅंट को अंदर ही अंदर पीता पुरुष
बच्चों की खुशी में अपने को लुटाता पुरुष
पत्नी के सपनों को
ख़ामोशी से खाद- पानी देता पुरुष
कितने रुप हैं पुरुष तिहारे
हर रूप है ख़ास ,हर रूप में प्यारे
स्नेहा भरा एक बंधन हो तुम
भावों का स्पंदन हो तुम
सुरक्षा -कवच हो परिवार का
अहम् स्तंभ हो गृहस्थी का
लाज हो बहना की राखी की
उम्मीद हो बुज़ुर्ग माता-पिता की
कितनी ख़ामोशी से तुम, हर रूप जिए जाते हो
अपने कामों की प्रशंसा, कभी नहीं गाते हो
वाकई पुरुष बनकर जीना भी कहाॅं सहज होता है!!!
@मधु माहेश्वरी गुवाहाटी असम ✍️



