
हर बार डाक्टर की क्लीनिक में बैठकर
सोचता हूँ कि काश!
ऐसा न किया होता, या
वैसा न किया होता!
कभी-कभी तो लगता है
कि मुझे सन्त-महात्माओं जैसा जीवन जीना चाहिए.
फिर मैं अपने-आप से पूछता हूँ कि क्या कोई
ऐसा उपाय है जिससे
मेरा शरीर रह सके सदा निरोगी?
फिर सोचता हूँ कि
क्या सन्त-महात्मा
कभी बीमार नहीं पड़ते होंगे?
यक्ष प्रश्न तो यक्ष प्रश्न हैं-इनकी तो नियति है
अनुत्तरित रहना!
पर मेरा क्या? मुझे तो समय काटना रहता है,
अपना नम्बर आने तक.
@राकेश चन्द्रा



