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हमारे आंगन का कोना
लगे गौरैया बिन सूना
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पंख पसारे वो आती थी
बच्चों को भी संग लाती थी
फुदक-फुदककर दाने खाना
लगता बड़ा सलोना……
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कोने मुण्डेरों के सजाती
अपने डैने कभी हिलाती
मां की गोद में वो आ जाती
बन के नन्हा छौना ….
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पानी में वो खूब नहाती
मीठे कलरव रोज सुनाती,
कभी फूल मोटी हो जाती
पल में नन्हीं सोना…..
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चलो एक घर हम बनवाएं
गौरैया को उसमें बसाएं,
चिड़ा-चिड़ी फिर घर में लौटें
लगे न कोई टोना …..
आशा बिसारिया चंदौसी



