साहित्य

भक्ति—अनुभूति से आत्मानुभव तक

योगेश गहतोड़ी "यश"

भक्ति न पूजा की सीमा है, भक्ति न वरदानों की आस,
भक्ति मन में तब जगती है, जब होता भगवान पर विश्वास।
भक्ति वह नयन-धारा है, जो मन की पीड़ा हर लेती,
भक्ति प्रभु को समर्पित होकर, थकान भी क्षण में हर लेती।

भक्ति वह ज्योति निराली है, जो मन को परम सुहाती है,
भक्ति वह सांत्वना-सरिता, अंतर के घाव मिटाती है।
भक्ति वह दर्पण निर्मल, जिसमें प्रभु का रूप निखरता,
भक्ति वह अनुभूति जहाँ पर, सारा विश्व तृप्ति भरता।

भक्ति वह आँसू के मोती हैं, जो अन्तर्मन को मिल पाती,
भक्ति वह मौन प्रार्थना है, जो वाणी से परे उठ जाती।
भक्ति वह चित्त-समाधि जहां, जगतमय विश्रांति मिलती,
भक्ति वह प्रेम-धुन है, जो हर पल हरि में ही खिलती।

भक्ति वह मौन अनूठा है, कहना जिसे कठिन हो जाता,
भक्ति वह अनुभूत ईश्वर, जो भीतर-भीतर गुनगुनाता।
भक्ति वह आत्म-दीपक है, जो हर अँधियारा हर देती,
भक्ति वह परम सुखानुभव,जो हृदय में अमृत भर देती।

भक्ति वह अक्षय श्रवण है, जो अनहद में गूँज उठाती,
भक्ति वह निर्मल साधना है, मन-संभार को समझाती।
भक्ति अनश्वर प्रेम-सुमन है, जो हर युग में खिला रहता,
भक्ति वह ब्रह्म-स्वरूप जहाँ, भक्त और भगवान मिलता।

✍️ योगेश गहतोड़ी “यश”

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