
(मैं)
मैं हूं नभ में,
इस धरा जल में मैं।
मैं हूं सूर्य में,
मैं हूं चंद्र अन्य नक्षत्रों में मैं।
तेजों का तेज हूं मैं,
विशाल ज्योति पुंज हूं मैं
बहता समीर को झोंक जो,
उसमें भी रहता हूं मैं।
वेद-पुराण ग्रंथो का रचेयता मैं,
गीत श्लोक छंदों में रहता मैं,
मेरे भक्त जो करते हैं सारे हवन
कर्मकांड,
इन सबका भोग्ता हूं मैं।।
सारे सुख दुख का निर्धारण कर्ता हूं मैं,
इस सारे चराचर जग का स्वामी हूं मैं,
जो भी भक्त आता मेरी शरण में
उनको पार लगाता हूं मैं।
संजय प्रधान
देहरादून।




