
वो मंजर कब मिटती है,
जो बीते लम्हों में बनती है।
छुई- मुई -सी धरा लगती है,
कोहरे के चादर में सिमटी है।
आग में मीठापन है,
पास बुलाने को मन है।
दिसम्बर जाने वाला है,
नव वर्ष का आगमन है।
ठंडी- ठंडी बर्फीली हवा है,
जैसे आने को तुफान है।
चम्पई फूलों सा आँगन है,
गुलाबी ठंडक लिए चाँद है।
खेतों में सुनहरा धान है,
किसानों का नया बिहान है।
—✍️कविता ए झा
नवी मुम्बई




