
गौरवगाथा भूल चुके जो,उनमें मान कहाँ से हो।
दौलत पर बिकने वालों में,फिर अभिमान कहाँ से हो।।
ऊँची ऊँची मीनारें भी -पलभर में गिर जाती हैं-
जिनकी नींव खून से लिपटी,उनमें प्रान कहाँ से हो।।
फिर से हमें पढ़ाना होगा,आरुणि औ नचिकेता को।
स्यंदन में भी पथ दिखलाये,पुस्तक पावन गीता को।।
याद हमें रखना ही होगा,शिवि दधीचि औ शूरों को-
गुरुमहिमा बिसराई जिसने,उसको ज्ञान कहाँ से हो।।
छल प्रपंच विद्वेष बढ़ रहे,सम्बन्धों पर पहरे हैं।
भारत माँ के आर्तनाद सुन,कान सभी के बहरे हैं।।
सावरकर सुभाष बिस्मिल,मंगल पांडे की माटी में-
देशद्रोहियों के माथे पर,वो अभिमान कहाँ से हो।।
मुल्ले मोमिन भंते भिक्षुक,पंडित फादर धूर्त जहाँ।
समता की उर्वर मिट्टी,बनती कटुता की मूर्ति वहाँ।।
इसीलिये तो तुम्हें जगाता,सो जाने पर खतरे हैं-
भला पराजित लोगों की,अपनी पहचान कहाँ से हो।।
डॉ. उदयराज मिश्र
9453433900



