साहित्य

दोहे

राम किशोर वर्मा

  1. शक्ति-विवेक व ज्ञान पर, मत करिए अभिमान ।
    पद-बल धन को देखिए , रहे न एक समान ।।१।।
    ✍️
    भ्राता को दुत्कार कर, और बिगाड़ा काम ।
    रावण भी तब ही मरा, भेद पा गये राम ।।२।।
    ✍️
    मरतेदम पर कूटता, रावण अपना माथ ।
    भ्राता को करके अलग, कटवा बैठा हाथ ।।३।।
    ✍️
    राम हुए भगवान तो, पा जाऊँगा मुक्ति ।
    मरूँ ईश के हाथ से, थी रावण की युक्ति ।।४।।
    ✍️
    राजा होंगे राम तो, निश्चित रावण जीत ।
    सुनी नहीं फिर एक की, था कितना मनमीत ।।५।।
    ✍️
    युद्ध समय में हो रहा, रावण को आभास ।
    राम रूप मानव नहीं, है शक्ति बहुत खास ।।६।।
    ✍️
    रावण अरु श्रीराम की, मात्र राशि थी एक ।
    असर नहीं था एक-सा, कर्मों की थी टेक ।।७।।
    ✍️
    रावण या श्रीराम जी, शिवजी के थे भक्त ।
    कर्मों के अनुसार ही, बदल गया था वक्त ।।८।।
    ✍️
    रावण था पंडित बड़ा, करता था अभिमान ‌।
    राम चन्द्र थे कम नहीं, सिखलाये गुण-ज्ञान ।।९।।
    ✍️
    राह सत्य की है कठिन, दिलवाती है जीत ।
    धैर्यधार सत्कर्म कर, सब होंगे मनमीत ।।१०।।
    -राम किशोर वर्मा
    रामपुर (उ०प्र०)
    दिनांक:- ०२-१०-२०२५ गुरुवार

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