
संयोगवश आज गांधी जयंती तथा रावण दहन दोनों एक साथ है। मैंने सोशल साइट्स पर एक वायरल मीम देखा बस एक व्यंग्यकार होने के नाते सोचने पर विवश हो गया कि यह महज़ संयोग नहीं बल्कि नियति का एक प्रयोग है।

हुआ यूं कि संयोगवश आज सबेरे सबेरे स्वर्गलोक में द्वापर युग के रावणजी की मुलाकात कलयुग के महात्मा गांधी जी से हो गई। रावण ने कहा गांधी आओ मेरे पास बैठो एक बड़ा गंभीर मुद्दा पर चर्चा करनी है। दरअसल हम दोनों ही एक ही व्यक्ति “राम” से मारे गए। बस अंतर सिर्फ इतना था कि मेरे राम के आगे “श्री” लगा है अर्थात “श्रीराम” और तुम्हारे में “नाथू” अर्थात “नाथूराम” लेकिन गलती जितनी उनकी है उतनी अपनी भी है। मैं राक्षसों के लिए अपनी शक्ति और विद्वत्ता नष्ट करता रहा जिसका अंत सुनिश्चित था और तुम भी तो गांधी अपने तथाकथित धर्मनिरपेक्षता में इतने उलझ गए थे कि तुम्हारा बहुसंख्यकों पर ध्यान ही नहीं रहा अतः विरोध होना स्वाभाविक था। हम अपनी एकतरफा सोच पर अड़े थे और वे अपने सनातन धर्म व मातृभूमि रक्षार्थ लड़े थे। आज़ भारत भूमि पर विशेषकर राजनीतिक पृष्ठभूमि में सम्पूर्ण भारत दो दलों में विभाजित होकर देश को नुक़सान कर रहा है। आपसी प्रेम और सौहार्द नष्ट कर रहा है। देश के लोग अच्छे हैं लेकिन बाहरी शक्तियां उन्हें दिग्भ्रमित कर रही है। वर्तमान परिस्थिति ऐसी आ गई है कि न तो तुम्हारी अहिंसा की लाठी काम आ रही है और न ही मेरी राक्षसी प्रवृत्ति रक्षक बन पा रही है। इसलिए अब आवश्यकता है कि हम दोनों पृथ्वीलोक पर चलकर विशेषकर भारतभूमि एक बैठक लें और अपनी अपनी ग़लती को स्वीकार कर दोनों दलों को मिलाने का प्रयास करें ताकि एक भारत श्रेष्ठ भारत की योजना कारगर हो। और एक बात ध्यान दो एक कहावत है कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। अब बेचारे इमानदार लाल बहादुर शास्त्री जी की क्या ग़लती है कि उनका भी जन्म जयंती तुम्हारे दिन ही है। इसलिए भारत में सबको कह दो कि जब लोग तुम्हारा जन्मदिन मनाने लगे तो एक फोटो शास्त्री जी का भी रखकर उनके लिए भी श्रद्धांजलि अर्पित करे। तो ठीक है योजना बनाकर एक दिन चलो भारत भूमि पर।
जय हिन्द जय भारत!
सुबोध झा ‘आशु’


