
तुम कहाँ जान सके प्यार हमारा क्या है।
देखते काश कि इसरार हमारा क्या है।
प्यार में अर्ध प है यार इसी में पूरा।
जो इसे मान सके सार हमारा क्या है।
एक दिन छोड़ के दुनिया है सभी को जाना।
बेवजह क्यों रखते भार हमारा क्या है।
हाथ खाली ले के इंसा तू जहां में आया।
राग की छोड़ सके खार हमारा क्या है।
पुण्य फल मंजु उसी को मिलता है जग में।
कर्म अपना जो ले संवार हमारा क्या है।
डॉ मंजु गुप्ता, वाशी , नवी मुंबई




