
दशहरे पर रावण फूंका,
मन का रावण मरा नहीं,
असली जीत तो होगी तब,
जब मन का अहंकार मिटे।।
ईर्ष्या की ज्वाला जलती,
लोभ की लपटें बढ़ती जाती,
ईर्ष्या–क्रोध का विष पीते,
अपने – अपनों से जलते हैं।
राम का पाठ भी करने वाले,
खुद रावण के गुण पाले हैं।
राम का चरित्र उतारो खुद में,
कम से कम खुद को बदलो।।
हर वर्ष यूं पुतला फूँक दिया,
पर आदतें वैसी की वैसी।
कब तक धोखा देंगे खुद को,
जब मन का रावण मरा नहीं।
राम का दीप तभी जलेगा,
जब मन से रावण भागेगा,
सत्य, धैर्य और करुणा से,
जीवन पथ आलोकित कर लो।
आओ मन में संकल्प जगाए
सिर्फ पुतले को न जलाएँ,
मन के रावण को हराकर,
सच्चा विजय दशहरा मनाएँ।
हर दिन मनाएं
सीता सर्वेश त्रिवेदी शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश




