
डाॅ.शिवेश्वर दत्त पाण्डेय
भारतीय लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था और विश्वास की नींव है। यह लोकतंत्र कई बार कठिन दौर से गुज़रा, आपातकाल जैसी कठोर परिस्थितियाँ देखीं, लेकिन हर बार और अधिक मज़बूत होकर उभरा। ऐसे में यदि कोई बड़ा राजनेता विदेश जाकर यही कहे कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है, तो यह न केवल हास्यास्पद प्रतीत होता है बल्कि राष्ट्रीय गरिमा पर चोट भी करता है।
राहुल गांधी ने हाल ही में विदेश यात्रा के दौरान भारतीय लोकतंत्र की स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए बयान दिए। यह वही नेता हैं जिनकी पार्टी ने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को कुचला था, मीडिया पर ताले लगाए थे और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया था। आज वही पार्टी और उसके नेता लोकतंत्र की दुहाई देकर विदेश में देश की छवि धूमिल कर रहे हैं। यह एक प्रकार से राजनीतिक अवसरवाद और आत्मविरोधाभास का उदाहरण है।
लोकतंत्र का अर्थ केवल आलोचना करना नहीं, बल्कि संस्थाओं में विश्वास जगाना भी है। यदि किसी दल को लगता है कि लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, तो उसका समाधान देश की संसद, चुनावी प्रक्रिया और जनता की अदालत में तलाशा जाना चाहिए। लेकिन जब वही आवाज़ विदेशी धरती पर गूँजती है, तो यह विरोध नहीं बल्कि “भारत की छवि को धूमिल करने का प्रयास” बन जाता है। सवाल यह भी है कि क्या विपक्ष अपनी राजनीति को राष्ट्रहित से ऊपर रखने लगा है?
सच्चाई यह है कि आज भारत विश्व में एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित हो रहा है। उसकी आर्थिक प्रगति, कूटनीतिक मजबूती और वैश्विक नेतृत्व की चर्चा हो रही है। ऐसे समय में विपक्ष का नेता यदि भारत को “लोकतंत्र संकटग्रस्त देश” कहे, तो वह आलोचना नहीं बल्कि राष्ट्र के आत्मविश्वास को चोट पहुँचाने का कार्य करता है।
राहुल गांधी का यह बयान भारतीय राजनीति में केवल एक विवाद खड़ा करने के लिए हो सकता है, लेकिन विदेश की धरती पर दिया गया यह वक्तव्य उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता और राष्ट्रहित से परे जाकर व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ही दर्शाता है। लोकतंत्र की रक्षा विदेशी मंचों पर रोना-धोना करके नहीं, बल्कि देश की जनता के बीच संघर्ष करके होती है। विपक्ष को यह समझना होगा कि देशहित से बड़ी कोई राजनीति नहीं होती।
डाॅ.शिवेश्वर दत्त पाण्डेय
समूह सम्पादक


