साहित्य

कहानी..    बंटवारा

मधु माहेश्वरी

सुनो भैया, मां को अपने साथ लेकर जाओ।
मुझे फोन क्यों करना पड़ रहा है? आप अपनी ड्यूटी भूल गए क्या ?दो महीने हो गए मम्मी पापा को मेरे साथ रहते हुए …ठीक है..भाभी का वर्क लोड ज़्यादा है…वो सब ठीक है …लेकिन इन्हें यहां से ले जाओ।गुड़िया के एग्जाम्स चल रहे हैं ..अच्छा-अच्छा ..तो ठीक है ।तब तक के लिए मां को आप ले जाओ और पापा को फिलहाल  चाचा जी के पास एक महीने और रुकने को बोल देते हैं। उन्हें  आप फोन करके ये बात बोल दें कि वहीं से पिंकी के यहां चले जाएं।
…..नहीं भैया.. यह ठीक नहीं है… मम्मी पापा मेरे अकेले की जिम्मेदारी नहीं है ना ?और इनके चक्कर में कहीं घूमने जाना नहीं होता, एकदम 24 घंटे का बंधन ।पापा को फोन करके मैं ही कह दूंगा कि कुछ दिन और चाचा जी के यहां  रहें, हमें गोवा घूमने जाना है।  यहां होते तो वह जाने के लिए हां ही कहते ।
यह उम्र इन लोगों की घूमने फिरने की थोड़े ही है भजन कीर्तन करने की है। जैसे भी हो, मां को कम से  महीने भर रखो ।पापा को पिंकी ले जाएगी। आख़िर ये उसके भी तो मम्मी पापा है ।
कम सुनने वाली मां को यह बात कुछ कुछ सुनी भी और समझ में भी आई। पास आकर धीरे से बेटे को बोली… मैं समझती हूं तुम बच्चों की मजबूरी…
वो लोग बच्चों की मजबूरी है,ऐसा उसे पिछले कुछ दिनों से आभास हो रहा था।बेटे ने बातचीत बंद कर दी थी लेकिन इस सच्चाई को उसकी ममता अनदेखा कर देती थी।पति समझाते भी कि ज़्यादा दिन साथ रहने से आपसी लगाव कम हो जाता है लेकिन वो हंसकर इतना भर कहती…तुम मां नहीं हो ना!!!अभी उसे लग रहा था कि जो वो सोचती है,उसकी संतानें वैसा नहीं सोचती।वो लोग प्रैक्टिकल हैं,अपनी ज़िंदगी को अहमियत देते हैं।               हिम्मत करके फिर बात को आगे बढ़ाया..
तुम तीनों को बड़ा करने के लिए, अच्छी शिक्षा देने के लिए हम दोनों ने दिन रात मेहनत की। घूमने पीने का तो ना ही वक्त़ था और ना ही पैसा। जवानी दोनों की कब ढल गई पता ही नहीं चला ।फिर शादियां ,फिर तुम लोगों के बच्चों की आया बनी।
गुस्से में बेटा बोला ..दादी दादा आया नहीं होते। उनका फ़र्ज़ बनता है अपने नाती पोतों को बड़ा करना ।यूं भी यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी ना कि मूलधन से ब्याज ज़्यादा प्यारा होता है। सो आपने कोई अनोखा काम तो किया नहीं !!
हां बेटा, तू सही कह रहा है कुछ भी अनोखा नहीं किया ।जो आज तुम अपने मां-बाप को अपने साथ रखे हुए हो ना,  अनोखा काम कर रहे हो क्या? अरे, नहीं रख सकते तो बुढ़ापे में दोनों को कम से कम अलग करने की तो मत सोच ! मैंने तेरी सारी बातें सुन लीं ।
अरे मां ,फोन पर कान लगाने की बजाय अपनी ज़िंदगी जीयो और हमें भी जीने दो।
मां ने कुछ सोचा, अपने ढलकने को आतुर आंसुओं को पोंछा , बेटे की तरफ एक सरसरी नज़र डालकर मानों मन ही मन कुछ फैसला किया और पति को फोन लगाया… सुनो जी, देवर जी के यहां से मत आना, मैं भी आ रही हूं  वहां।बची हुई ज़िंदगी अपने गांव में अपनों के बीच साथ-साथ काटेंगे। अपनी संतानें तो हमारा बंटवारा करने चली थी।
गलत तरीके से इंटरप्रेट कर रही हो मम्मी,आप मिल बांटकर अपने तीनों बच्चों के पास रहो।अब दो सीनियर्स एक के पास रहेंगे तो बहुत ज़्यादा रिस्पांसिबिलिटी आती है,नहीं होता इतना समय मां।ऑफिस करके हम दोनों थक जाते है अब सेवा  करने का ना समय है,ना हिम्मत और ना ही ट्रेंड..बीच में ही रोककर मां गुस्से में बोली..हां,पुराने ट्रेंड्स फॉलो करने  का तो सिर्फ हमने ही ठेका ले रखा है न?तुम्हारे बच्चों के लिए उनकी बीमारी में रात रात भर जागना… बेवकूफ़ थे हम जो ममता का ट्रेंड फॉलो करते रहे।पता नहीं उनमें कहां से आज इतनी हिम्मत आ गई थी।अंदर का गुबार निकालकर अब उन्हें बड़ा हल्का लग रहा था।
बुढ़ापे में ही सही अक्ल आ गई  है कि अपनी ज़िंदगी को अपने हिसाब से जीना हमारा भी अधिकार है..मां ने फोन काटा ,आंसू पोंछे, ज़ोर से खुलकर हंसी और अपना सामान पैक करने अंदर चली गईं।
@मधु माहेश्वरी ✍️

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