
गंगा मैया है जीवन की धारा,
हर भक्त की तुम हो सहारा।
पाप हर लेती हो पल भर में सबके
मोक्ष का देती तुम मधुर किनारा।
हिमगिरि से निकली हो निर्मल धारा ,
जन-मन को करती हो नव संबल।
सदियों से संस्कृति की रक्षक हो ,
भारत का जीवन का तुम संबल हो।
नैया जीवन की जब भी डगमगाए,
तुम ही भवसागर से पार लगाओ।
आँसू धोकर, मन को करती शीतल,
आशा की नव ज्योति जगाओ।
तेरे तट पर दीप जलते हैं ,
भक्त हृदय से गीत सबके छलकते है।
अमर कथा बनती है मां गंगा,
हर युग में तुम ही हमको संभालती ।
हे मैयागंगा तेरे चरणों में वंदन,
करते हैं हम सब नित तुमको अर्पण।
जीवन की नैया पार हमारी लगाना,
तुम बिन असंभव, गंगा जननी मां गंगा !
कुलदीप सिंह रुहेला
सहारनपुर उत्तर प्रदेश




