
हर-हर गंगे माता तुझको, सुधि मन से हम करें प्रणाम ।
चिंता हरता कौन सगर की, दे सकता पुत्रों को मोक्ष ।
माँ गंगा के तीव्र वेग में, तैर सकेगा कौन परोक्ष ।।
भूप भगीरथ के तप से ही, होना था सबका उद्धार ।
रोक सके केवल त्रिपुरारी, लिए जटा में सारा भार ।।
महादेव ने सुरसरि को तब,लिया जटा में अपनी थाम ।
हर-हर गंगे माता तुझको, – – – –
गर्म ज्येष्ठ शुभ दिन दशमी का, गङ्गा आयी ले अवतार ।
शिवजी के माथे से उतरी, बहती आयी शीतल धार ।।
भूप भगीरथ बने तपस्वी, हरने को जग का संताप ।
सुरसरि माता पतित पावनी, हरे मनुज के सारे पाप ।।
निर्देश कपिल मुनि के धारे, हुए भगीरथ के सब काम।
हर-हर गंगे माता तुझको, – – – – – –
सुरसरि मंदाकिनी जाह्नवी, भारत की अद्भुत पहचान ।
सरस अमिय निर्मल जलधारा, करे सभी श्रद्धा से पान।।
चारों प्रयाग नीरामृत से, बने तीर्थ के पावन धाम ।
गौमुख से सागर तट गंगा, अधरों पर है तेरा नाम ।।
तेरे पुण्य सलिल से पोषित,धन्य धरा का तीर्थ सुनाम ।
हर-हर गंगे माता तुझको, – – – – – –
*-लक्ष्मण लड़ीवाला ‘रामानुज’*
गंगोत्री नगर, गोपालपुरा, जयपुर (राज.)



