
शब्दों के तीर न चलने दो,
मन की दीवार न गलने दो।
मधुर वचन प्रेम का सेतु बने,
कटुता के रेख न पलने दो।
शब्द अमृत बन बह जाएँ जो,
घाव किसी का न बढ़ पाएँ जो।
वाणी में हो मधुरिमा सदा,
दुख की लहर न जग पाएँ जो।
वाणी वरदान समझ बोलो,
सत्य सदा ही मुख से तोलो।
रूखे स्वरों में विष न घोले,
मौन रखो जब भाव न खो लो।
शब्दों से दीप जलाओ मन,
कर दो हर हृदय पुलकित वन।
प्रेम लता की छाया दे दो,
बने वचन जग में पावन धन।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार


