
धरा में बीज जाकर के, स्वयं को ही मिटाते हैं।
लगा दो जान की बाजी, यही हमको बताते हैं।
मिलेगी हर खुशी तुमको, उड़ोगे पंख बिन ही तुम-
मिटाया गर्व ये जिसने, वही हरि को लुभाते हैं।।1।।
वतन में जो छिपे दुश्मन, जड़ों से वे हिलेंगे कब।
विभाजन के हटा नारे, परस्पर हम मिलेंगे कब।
धरा है जान से प्यारी, लगे ये स्वर्ग से सुन्दर-
प्रगति से जो रहे वंचित, सुमन सारे खिलेंगे कब।।2।।
छुअन जब प्यार से होती, वहाँ उलझन नहीं रहती।
हथोड़े की सहे चोटें, मगर ताली उसे सहती।
घुमा दें प्रेम से दिल पर, कलेजा खोल दे ताला-
नहीं दो प्रेम में धोखा, यही शिक्षा हमें कहती।।3।।
हिम्मत चोरड़िया प्रज्ञा
कोलकाता,कोलकाता




