
1
गुम हुआ बचपन और गायब रुन – झुन है।
आंगन का खेला और गायब चुन- मुन है।।
बच्चे बन गये जैसे चाबी का कोई खिलौना।
वर्षा पानी और गायब किश्ती की सुन-सुन है।।
2
आ गया आधुनिक वाला कोई नया सा दौर है।
मोबाइल पर उंगलियाँ कर रहीं भाग -दौड़ है।।
ऑनलाइन संस्कार और संस्कृति आते नहीं।
उम्र से पहले बड़े हो रहे पर नहीं हो रहा गौर है।।
3
किधर जा रही परवरिश जरूरत देखने की।
कुछ गलत सीख रहे तो जरूरत रोकने की।।
गीली मिट्टी उनकी और राहें फिसलती हुई।
थामना बहुतआवश्यक है जरूरत सोचने की।।
4
पहले दिन से ही सबक संस्कार का जरूरी है।
बचपन की मासूमियत से नहीं बन जाए दूरी है।।
वक़्त निकल गया तो फिर हाथ नहीं आयेगा।
बच्चों को समय न दे पाएं ये कैसी मजबूरी है।।
5
कल पर मत टालो आज ही समय सिखाने का।
अच्छा बुरा सही गलत का भेद उन्हें बताने का।।
आज के नौनिहाल देश के कर्णधार कल के।
इन बच्चों पर ही है भार राष्ट्र भविष्य बनाने का।।
रचयिता।।एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली।।




